संदेश
उड़ो तुम लड़कियों - कविता - सुनीता प्रशांत
उड़ो तुम लड़कियों छू लो आसमान कर लो मुठ्ठी में सारा जहान तोड़ दो दीवारे जो रोकती हैं तुम्हे छोड़ दो वो बंदिशे जो बाँधती हैं तुम्हे रूढ…
मेरे पिता - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
अपने पिता के बीते जीवन को जितना जानने की कोशिश करता हूँ अक्सर हारा हुआ, और हटाश महसूस करता हूँ जबकि दुःख से मुठभेड़ करते कभी उदास नहीं …
अनगढ़ कविताएँ - कविता - संजय राजभर 'समित'
जीवन भाग-दौड़ में है अंदर कविताएँ किसी तरह लिख भी दिया तो व्याकरण का जाँच रह जाता है बाक़ी आज-कल सुबह-शाम करते हुए हृदय में दूसरी कविता…
परिभाषा नारी कठिन - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
परिभाषा नारी कठिन, महिमा कठिन बखान। हे अम्बा धरणी जयतु, कठिन मातु सम्मान॥ लज्जा श्रद्धा मातृका, ममतांचल संसार। क्षमा दया करुणा हृदय…
मॉं की दुआ - कविता - महेन्द्र सिंह कटारिया
उस आँगन में रहे ना कभी, सुख-समृद्धि का अभाव। फलीभूत रहता है जबतक, माँ की दुआओं का प्रभाव। जन्मदात्री की आज्ञा का, जिस घर में हो अनुपाल…
मेरी माँ - कविता - आर॰ सी॰ यादव
अमिट प्रेम की पीयूष निर्झर, क्षमा दया की सरिता हो। गीत ग़ज़ल चौपाई तुम हो, मेरे मन की कविता हो॥ ऋद्धि सिद्धि तुम आदिशक्ति हो, ज्ञानदाय…
माँ - नवगीत - सुशील शर्मा
तेज़ धूप में बरगद जैसी छाया माँ। झुर्री वाली प्यारी प्यारी काया माँ। मेरे मानस की लहरी में, सदा सुहागन मेरी माँ। मेरी जीवन शैली में, सु…
स्नेह भरे आँचल में माते - गीत - उमेश यादव
कष्टों से व्याकुल मेरा मन, पीड़ा से जब भरता है। स्नेह भरे आँचल में माते, छुपने को मन करता है॥ जब भी विपदा आई मुझपर, तूने हमें बचाया है।…
अम्मा कहो! - कविता - ऋचा सिंह
जिसने बैठाई तुरपाई हर टूटे रिश्ते में झुककर बात बनाई घिसते छूटे रिश्तों में, अम्मा कहो! कैसे इतना धीर दिखाया? कैसे ऐसा किरदार बनाया? …
अंगारों को यूँ जिनके सीने में धड़कते देखा है - नज़्म - सुनील खेड़ीवाल 'सुराज'
अंगारों को यूँ जिनके सीने में धड़कते देखा है, मेहनत कशी से वक्त फिर उनको बदलते देखा है। ये राह आसाँ तो नहीं पर लेना तुमको दम नहीं, चिं…
वही तो मेरी माता है - कविता - सुनील गुप्ता
ममता की आँचल में जिसने, छुपा कर मुझको पाला है, असीम विपत्तियाँ सहकर भी, मेरे जीवन को संभाला है, दुःख भी जिनके सामने आकर, अपना सर झुकात…
कब तक? - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
तुम रो रहे हो कुशाग्र! पर किसलिए? अकेले यूँ रोना अच्छा नहीं, यह करके तुम मेरे साथ भी धोखा कर रहे हो। कुशाग्र कुन्दन को आश्चर्य भरी नज़…
ऐ कविता! - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
ऐ कविता! शायद तू मेरी सहेली है, तू प्यारी सी कोई पहेली है। नीरसता में रस भर देती, तू अलबेली है सच तू अलबेली है। ऐ कविता! शायद तू मेरी …
मैं चिर निर्वासित दीपक हूँ - कविता - राघवेंद्र सिंह
दिनकर-सी चाह नहीं मेरी, उद्घोषित राह नहीं मेरी। निर्भीक, निडर, निश्चल-सा मैं, प्रतिदिन, प्रतिक्षण, प्रतिपल-सा मैं। स्पंदन ही जीवन मेरा…
ऊहापोह - कविता - प्रवीन 'पथिक'
रात ढली ही नहीं! करवट बदलता रहा बिछौने पर। ऑंखों में रौद्र की लालिमा; मस्तिक में प्रश्नों का तूफ़ान; जीवन की आद्योपंत रेखा; खींच गई मान…
बिखरे ना परिवार हमारा - कविता - अंकुर सिंह
भैया न्याय की बातें कर लो, सार्थक पहल इक रख लो। एक माँ की हम दो औलादें, निज अनुज पे रहम कर दो॥ हो रहा परिवार की किरकिरी, गली, नुक्कड़ …
हे तथागत ये बताओं - कविता - मयंक द्विवेदी
हे तथागत ये बताओ जीवन का क्या मर्म है? कैसे हो जीवन का उद्धार क्या संन्यास ही है मुक्ति का द्वार कैसे सम्भव है जन्म पर ना हर्ष हो? और …
जंगली मन - कविता - सुनीता प्रशांत
इन हरे भरे जंगली पेड़ों जैसे मैं भी हरी भरी हो जाऊँ मनचाहा आकार ले लूँ कितनी भी बढ़ जाऊँ फैल जाऊँ दूर-दूर तक या आकाश को छू जाऊँ रोकना…
फिर भी मुस्कुरा दिया - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
ग़म थे ज़माने भर के, फिर भी मुस्कुरा दिया। फूल होने का, फ़र्ज़ अदा किया। काग़ज़ और पैन का, समझोता टूटा। लिखता वो, काग़ज़ की नापसन्दगी का। चलती…
ख़ास - कविता - विनय विश्वा
मनुष्य गुणों से ही तो ख़ास होता है इसीलिए तो वह दिल के पास होता है। ईश्वर के अवतारी युग– त्रेता हो या द्वापर राम के ख़ास हनुमान कृष्ण के…
प्रेम - कविता - प्रेम ठक्कर
प्रेम नहीं सिमटता व्यक्ति में, सत्य है। प्रेम में विलीन होना निश्चित है, सत्य है। बीते कल की चिंताओं को भूलकर, उस प्रेम के समंदर में ग…
माँ कूष्मांडा - गीत - उमेश यादव
आदिस्वरुपा माँ कूष्मांडा, सृष्टि धारक पालक हो माता। रोग शोक का अंत करो माँ, सिंहवाहिनी भगवती माता॥ अष्टभुजा हे आदिशक्ति माँ, निज स्…
म्हारो नववर्ष आयो - गीत - हिमांशु चतुर्वेदी 'मृदुल'
आयो रे आयो म्हारो शुभदिन आयो आयो रे आयो म्हारो नववर्ष आयो चैत्र नवरात्रि रो प्रथम दिवस आयो नव प्रभात नवरंग संग साथ लायो आयो रे आयो म…
बढ़ते रहो पथिक सदा - कुण्डलिया छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
बढ़ते रहो पथिक सदा, धरि धीरज की डोर। स्नेह प्रेम ममता लिए, सबहिं रखो हृद कोर॥ सबहिं रखो हृद कोर, शान्ति संयम को धारो। सीखो सहना पीर, अ…
धरती का शृंगार मिटा है - कविता - राघवेंद्र सिंह
धधक उठी है ज्वालित धरती, जल थल अम्बर धधक उठा है। अंगारों की विष बूँदों से, प्रणय काल भी भभक उठा है। सूख गए हैं तृण-तृण सारे, दिग दिगंत…
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