बिखरे ना परिवार हमारा - कविता - अंकुर सिंह

बिखरे ना परिवार हमारा - कविता - अंकुर सिंह | Hindi Kavita - Bikhre Na Parivaar Hamara - Ankur Singh. Hindi Poem About Family | परिवार पर कविता
भैया न्याय की बातें कर लो,
सार्थक पहल इक रख लो।
एक माँ की हम दो औलादें,
निज अनुज पे रहम कर दो॥

हो रहा परिवार की किरकिरी,
गली, नुक्कड़ और बाज़ारों में।
न्यायपूर्ण आपसी संवाद छोड़,
अर्ज़ी दिए कोर्ट कचहरी थानों में॥

लिप्सा रहित हो सभा हमारी,
निष्पक्ष पूर्ण हो संवाद हमारा।
मैं कहूँ तुम सुनो तुम कहो मैं,
ताकि ख़त्म हो विवाद हमारा॥

कर किनारा धन दौलत को,
भाई बन कुछ पल बात करों।
माँ जैसे देती रोटी दो भागों में,
मिलकर उस पल को याद करों॥
बिन माँ बाप का अनुज तुम्हारा,
माँ बाप बनके आज न्याय करों॥

हर लबों पे अपनी कानाफूसी,
बैरी कर रहे अपनी जासूसी।

भैया, गर्भ एक लहू एक हमारा,
कंधों पे झूलने वाला मैं दुलारा।
आओ मिलकर रोके दूरियाँ,
ताकि बिखरे ना परिवार हमारा॥
ताकि बिखरे ना.......


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