बढ़ते रहो पथिक सदा, धरि धीरज की डोर।
स्नेह प्रेम ममता लिए, सबहिं रखो हृद कोर॥
सबहिं रखो हृद कोर, शान्ति संयम को धारो।
सीखो सहना पीर, अरे मन! कबहुं न हारो॥
चलो चीर नद नार, राह नव गढ़ते-गढ़ते।
छुओ लक्ष्य के पाँव, धरा से नभ को बढ़ते॥
शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फ़तेहपुर (उत्तर प्रदेश)