ख़ास - कविता - विनय विश्वा

ख़ास - कविता - विनय विश्वा | Hindi Kavita - Khaas - Vinay Vishwa. ख़ास पर कविता
मनुष्य गुणों से ही तो ख़ास होता है
इसीलिए तो वह
दिल के पास होता है।
ईश्वर के अवतारी युग–
त्रेता हो या द्वापर
राम के ख़ास हनुमान
कृष्ण के ख़ास सुदामा
है सखा भाव की परिपक्वता

ऐसे ही नायकत्व से इस आदिम होते युग में 
सख्य भाव की तलाश है
जिसकी सखा 
ख़ास है– वह
तुम हो या की मैं
या सूरज की परछाई
या हवा में महक पसारती
बसंत!
है वह ख़ास
मेरे अंतस की साँस
वह सखा जिसकी
शाखा हज़ार-हज़ार बाहों वाली हो
जो वसुधैव कुटुंबकम् का प्रतीक हो
जिसमें भारत का भाष्य हो
अतीत, वर्तमान, भविष्य का।


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