संदेश
परम्परागत और वैज्ञानिक कृषि जल संकट और जीवनशैली - लेख - श्याम नन्दन पाण्डेय
भारत ही नहीं अपितु पूरी दुनिया में बढ़ती हुई जनसंख्या और और कृषि योग्य भूमि की कमी से खाद्य संकट संभावना बढ़ रही है और इसकी आपूर्ति के ल…
दिवा स्वप्न - कविता - प्रवीन 'पथिक'
एक; किसी पिंजरे में कैद पक्षी की तरह, फड़फड़ाता है। उसके निकलने के अपेक्षा, मौत का आलिंगन प्यारा लगता है। रात के सन्नाटे पर अंधेरा हॅं…
बचपन - कविता - ऋचा तिवारी
मन माधव सा दौड़ा करता, ये चंचल सा बचपन प्यारा। तारो को मुट्ठी में भर लूँ, और तिमिर मिटे जग का सारा। जिज्ञासु मन भोला बचपन, निस्पाप…
बारिश - कविता - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
रिमझिम-रिमझिम बारिश की बुँदे आकाश लोक से आई है, धरा भी इनका प्रथम स्पर्श पाकर लगता है कुछ-कुछ शर्माई है। फूलो और पत्तों पर टप-टप लागे …
आ भी जाओ श्याम - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
तुम बिन रहा न जाए अब, आ भी जाओ श्याम। तरस रही मुरली श्रवण, मैं राधे प्रिय वाम॥ तुम साजन माधव मदन, मैं राधे रति श्याम। केशव की कुसुम…
अब हम शहर में हैं - कविता - रमाकान्त चौधरी
होते थे सौ मन गेंहूँ सौ मन धान तमाम दलहन तिलहन बड़ा सुकून था गाँव में। गाँव का बड़ा खेत बेचकर एक छोटा प्लॉट ख़रीदा शहर में अब हम शहर म…
हामर पेटेक आइगीं - खोरठा कविता - विनय तिवारी
हामर पेटेक आइगीं पोइड़ के बानी-छाय होय जाय हामर हिंछा, हामर बुधि हामर उलगुलान, हामर सोच हामर पेट आर माड़-भात। एकर बिचें हाड़तोड़वा काम ज…
नहीं रोया कभी पशु - कविता - डॉ॰ नेत्रपाल मलिक
नहीं रोया कभी पशु उसने नहीं किसी का विश्वास तोड़ा नहीं कभी वो झूठ बोला नहीं किसी को धोखा दिया नहीं कभी विद्रोह किया कर दिया अपना जीवन…
आवश्यकता है लड़ने की - कविता - डॉ॰ अबू होरैरा
आवश्यकता है लड़ने की– चीथड़ा पहनाने वालों से, पेट और पीठ को एक करने वाली तोन्दों से, एक ही कमरे में गृहस्थी बसवाने वालों से, ग़लत पाठ पढ़ा…
पति-पत्नी - कविता - विजय कुमार सिन्हा
दो अनजाने परिवारों के बच्चे बंधते हैं एक साथ परिणय सूत्र में परिणय सूत्र में बंधते ही हो जाते हैं जीवन भर के लिए एक दूसरे के लिए। और …
हे बुद्ध तथागत! - गीत - प्रशान्त 'अरहत'
हे बुद्ध तथागत! चरणों में मैं याचक बनकर आया हूँ, तुम मुझको प्रज्ञावान करो, मैं शरण तुम्हारी आया हूँ। मैं पंचशील भी अपनाऊँ, आर्यों को स…
मदमस्त पुष्प - कविता - गणेश भारद्वाज
आई थी मनभावन आँधी, मेरे भी नीरस जीवन में। जी भर उसने कोशिश की थी, पर चमक नहीं थी सीवन में। शंकाओं में पल बीत गए, वो हार गए हम जीत गए। …
सुनो सबकी करो अपने मन की - लेख - कुमुद शर्मा 'काशवी'
इस उपरोक्त लोकोक्ति (मुहावरे) का अर्थ कितना सीधा एवं सरल है ना! कि हमें बातें तो सबकी सुन लेनी चाहिए पर हमारे मन को जो अच्छा लगे उसी क…
भाव - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
तुममें और मुझमें बस एक समानता है, तुम भाव के भूखे हो और मैं भी। माना के तुम्हारे भाव और मेरे भाव में अंतर है ज़मीं आसमाँ का पर शब्द तो …
माँ स्वयं में संसार है - कविता - संजय राजभर 'समित'
एक माँ अपनों बच्चों के लिए एक सुरक्षा कवच है, ममता की धारा माँ और बच्चे दोनों को आजीवन सींचती रहती हैं एक असीम आनंद की अनुभूति एक माँ …
बादल - कविता - उमेन्द्र निराला
हे बादल! अब तो बरसो भू-गर्भ में सुप्त अंकुर क्षीण अनाशक्त, दैन्य-जड़ित अपलक नत-नयन चेतन मन है, शांत। नीर प्लावन ला एक बार देख प्रकोप ह्…
समाज - कविता - डॉ॰ अर्चना मिश्रा
पानी सा तैरता जीवन धपाक छपाक फिर निशब्दता निशब्दता से उपजता कोलाहल कोलाहल में सन्नाटा सन्नाटों से उपजता शोर शोर से हो जाता भयावह म…
छोटे लोग गिने जाते कंकर की श्रेणी में - ग़ज़ल - भाऊराव महंत
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन तक़ती : 2122 2122 21221 छोटे लोग गिने जाते कंकर की श्रेणी में, और बड़े आ जाते हैं पत्थर की श्रे…
मानसून का इंतज़ार है - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
भीषण गर्मी उमस बढ़ी है मानसून का इंतज़ार है। छाया-धूप है सखी-सहेली। पानी और है गुड़ की भेली॥ भेड़ाघाट नर्मदा तट पर और वहीं पे धुँआधार ह…
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