पति-पत्नी - कविता - विजय कुमार सिन्हा

दो अनजाने परिवारों के बच्चे बंधते हैं एक साथ परिणय सूत्र में
परिणय सूत्र में बंधते ही
हो जाते हैं
जीवन भर के लिए एक दूसरे के लिए। 
और यह रिश्ता कहलाता है 
पति-पत्नी का रिश्ता।
जब इस रिश्ते में शब्द का महत्व कम और समझ का ज्यादा हो जाता है
तो जीवन आनंदमय हो जाता है। 
इस रिश्ते में कोई हिस्सेदारी नहीं
बल्कि भागीदारी होती है।
एक ने अपने जीवन साथी के लिए 
अपना घर-परिवार, नाते रिश्ते सब छोड़ा।
दूसरे ने अपने जीवन में उसे वह सब अधिकार दिया
जिसकी वह हक़दार थी।
पर त्याग समर्पण संगिनी का 
ज़्यादा कहलाएगा 
क्योंकि संगी के परिवार से
उसने पूरे दिल से संबंध स्थापित किया।
पति-पत्नी के संबंध की डोर होती है बड़ी मज़बूत 
दोनो होते एक दूसरे के दिल की धड़कन 
दुख सुख के साथी
एक के बिना दूसरा अधूरा।
पति अगर भरोसा है तो पत्नी समर्पण।
दोनों एक दूसरे पर सब कुछ कर
देते हैं अर्पण।
पत्नी दिया के बाती की वह रौशनी होती है
जो अपने पति को सदैव रौशनी दिखाती है।
पति-पत्नी का रिश्ता
होता है एक ख़ूबसूरत रिश्ता।
यह वह रिश्ता होता है
जिसे ईश्वर बनाता है।
प्यार की मूरत होती पत्नी
घर को स्वर्ग बनाती वो,
अपने नन्हे मुन्ने बच्चों को 
संस्कारों में ढालती वो।
यह वह रिश्ता है 
जो जन्म से नहीं जुड़ता
पर जुड़ने के बाद 
अंतिम समय तक साथ रहता है।
इसलिए पति-पत्नी का रिश्ता
सबसे प्यारा रिश्ता कहलाता है।


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