मानसून का इंतज़ार है - नवगीत - अविनाश ब्यौहार

भीषण गर्मी
उमस बढ़ी है
मानसून का इंतज़ार है।

छाया-धूप है
सखी-सहेली।
पानी और है
गुड़ की भेली॥

भेड़ाघाट नर्मदा तट पर
और वहीं पे
धुँआधार है।

लू-लपटों का
राज है चलता।
मंथर-मंथर
काज है चलता॥

अंधकार का
जिस्म है देखा
रश्मि उसके आर-पार है।


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