प्रशान्त 'अरहत' - शाहाबाद, हरदोई (उत्तर प्रदेश)
हे बुद्ध तथागत! - गीत - प्रशान्त 'अरहत'
मंगलवार, जून 27, 2023
हे बुद्ध तथागत! चरणों में मैं याचक बनकर आया हूँ,
तुम मुझको प्रज्ञावान करो, मैं शरण तुम्हारी आया हूँ।
मैं पंचशील भी अपनाऊँ, आर्यों को सत्य मानता हूँ,
मैं करूँ साधना लगातार, ये प्रण भी अभी ठानता हूँ।
पहले से तेरा उपासक हूँ अब याचक बनकर आया हूँ,
मुझको लौटाओगे कैसे मैं शरण तुम्हारी आया हूँ।
अर्पित करने को धूप, दीप और फूल साथ में लाया हूँ,
वंदन करता हूँ तात और चरणों में शीश नवाया हूँ।
ये भेंट करो स्वीकार साथ में और नहीं कुछ लाया हूँ,
तुम मुझको प्रज्ञावान करो मैं शरण तुम्हारी आया हूँ।
हे महाबुद्ध! इस साधक पर इतनी करुणा बरसा देना,
मैं शील, समाधि में लीन रहूँ, इतनी प्रज्ञा मुझको देना।
आष्टांगिक मार्ग पर चलकर के, मुझे लक्ष्य को पाना है,
फिर दीन-दुखी की सेवा कर, करुणा का पाठ पढ़ाना है।
जो मन में मैंने ठाना है वो जल्दी मुझको मिल जाए,
तब नया सबेरा हो मेरा सब अंधकार ये मिट जाए।
मैं यही सोच अपने मन में फिर जन सेवा में आया हूँ,
तुम मुझको प्रज्ञावान करो मैं शरण धम्म की आया हूँ।
हे महाकारुणिक बुद्ध! मुझे आनंद समझ लेना अपना,
अरहत बनकर मैं नाम करूँ मेरा केवल है ये सपना।
यश फैले धरती पर इतना जितना धरती पर पानी हो,
सदियों तक चलती रहे सदा मेरी भी कोई कहानी हो।
हम सबने यह प्रण ठाना है यह बौद्ध संघ बढ़ाने का,
एक बार पुनः इस धरती पर ये धम्म ध्वजा लहराने का।
मैं बुद्ध चुनो या युद्ध चुनो का मार्ग बताने आया हूँ,
तुम मुझको प्रज्ञावान करो मैं शरण संघ की आया हूँ।
हे बुद्ध तथागत! चरणों में मैं याचक बनकर आया हूँ,
तुम मुझको प्रज्ञावान करो मैं शरण संघ की आया हूँ।
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