संदेश
प्रीति के रंग - सरसी छंद - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'
भीनी-भीनी सुगंध लेकर, आयी पुरवा द्वार। तन मन भीगे-भीगे दिखते, दिलों प्रेम संचार॥ अंगन-अंगन हलचल दिखती, प्यार-मुहब्बत साथ। प्रेम-प्यार …
आन-बान और शान की प्रतीक हैं टोपियाँ - लेख - सुनीता भट्ट पैन्यूली | टोपियों के बारे में जानकारी
सर्द मौसम है कभी बादल सूर्य को आग़ोश में ले लेते हैं कभी सूरज देवता बादलों को पछाड़कर धूप फेंकते यहाँ वहाँ नज़र आ जाते हैं, कभी पेड़ो क…
वह तुम्हीं थी - कविता - प्रवीन 'पथिक'
तुम्हारा यूॅं मिलना; जैसे मुरझाते पौधों की, धमनियों में प्रेम जल का प्रवाह होना; जिसका पल्लवन ये सुंदर पुष्प है। तुझसे पूर्व, तुम्हारी…
आशा किरण - कविता - बृज उमराव
मनसा वाचा कर्मणा, सत्कर्मों के साथ। जीवन सफल बनाइए, न हो मनुज उदास॥ उम्र मात्र गिनती होती, हौसला रखें हरदम कायम। मंज़िल है न कोई असम्भव…
निशान - कहानी - हर्षवर्धन भट्ट
सुबह-सुबह जल्दी घर से निकल कर सीधे ऑफ़िस की मीटिंग में शिरकत कर एक विक्रेता के पास जाना है, बहुत ज़रूरी मीटिंग है। टाइम पर मशीन पार्ट्…
मारा ग़म ने - गीत - गोकुल कोठारी
नहीं तुमने, नहीं हमने, मारा अगर तो, मारा ग़म ने। नैनों से कहो, ज़्यादा न बहो, समझे हैं हम, कहो न कहो। गिनते थे दुनिया के हम तो लाख सितम,…
झरना - कविता - सतीश शर्मा 'सृजन'
झर झर झर झरता झरना, झरने का है ये कहना– चट्टानों की छाती पर चढ़, रोड़ों से कभी तनिक न डर। बाधाओं में न रुक जाना, बहते जाना, सहते जाना, च…
हरि आन बसो मोरे मन में - गीत - हिमांशु चतुर्वेदी 'मृदुल'
हरि आन बसो मोरे मन में। हरि तुम ही तो हो मोरे मन में॥ मथुरा खोजा, गोकुल खोजा, हर मंदिर में हर मूरत में। प्रभु जा के मिले निश्चल मन में…
ठंड की मिठास - कविता - रविंद्र दुबे 'बाबु'
ठंडी सिहरन शाम शहर से, तन मन ठिठुरे घर आँगन भी। तेज़ किरण लालिमा भाती, सूरज जागे देर, जल्द शयन भी॥ ओस की बूँदें हल्की-हल्की, मोती बनकर …
हित-अहित - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
आपसी संबंधों का तोड़ना नहीं है आपके हित में मित्रता तोड़ना नहीं है आपके हित में आना जाना बंद करना नहीं है आपके हित में जीवन छोटा है क…
वक़्त को यूँ न ठुकराइए - ग़ज़ल - दीपा पाण्डेय
अरकान : फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन तक़ती : 212 212 212 वक़्त को यूँ न ठुकराइए, वक़्त है क़ीमती जानिए। ख़्वाबों में मंज़िलें ही सही, ख़ुद को श्रम …
मन में रही नहीं - घनाक्षरी छंद - अभिषेक बाजपेयी
सत्य से जुड़ा सदैव ही रहा हूँ जीवन में, झूठ की कुसंग बचपन से रही नहीं। अधिकार छीनते जो उनसे लड़ा हूँ किंतु, धर्म के विरुद्ध शक्ति त…
सूरज - हाइकु - आशीष कुमार
1. सूरज हूँ मैं प्रकाश बिखेरता तम मिटाता 2. सौर मंडल गतिशील रहता परिक्रमा में 3. ऊर्जा स्रोत हूँ संचरण करता जोश भरता 4. जीव जगत निर्भर…
पक्षी की मन व्यथा - कविता - अनूप अंबर
तुम इंसानों को मुझ पर, बिल्कुल तरस ना आया है। मुझे बताओ मैंने किसको, दुख दर्द भला पहुँचाया है॥ मैं वृक्षों पर विचरण करता था, मीठे फल क…
प्रकृति और अँधेरा - कविता - डॉ॰ आलोक चांटिया
मानते क्यों नहीं इस दुनिया में आने के लिए हर बीज ने एक अँधेरा गर्भ में जिया है पृथ्वी को तोड़कर या गर्भ की असीम प्रसव पीड़ा के बाद …
प्रेम की भाषा - त्रिभंगी छंद - संजय राजभर 'समित'
अंतः से बोलो, मधु रस घोलो, प्रेम सरल हो,धाम करें। ममता की भाषा, सबकी आशा, पशु भी समझे, काम करें॥ परखते हैं खरा, समझो न ज़रा, प्यार तो त…
वह अधिवक्ता होता है - कविता - रमाकान्त चौधरी
न्याय व्यवस्था प्रणाली का, जो अंग अनूठा होता है। शोषित जन की लड़े लड़ाई, वह अधिवक्ता होता है। सौम्य स्वभाव सरल बातें, झूठ कपट न क…
न एहमियत न एहतराम समझता है - ग़ज़ल - रज्जन राजा
अरकान : मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन फ़ा तक़ती : 1212 1212 1212 2 न एहमियत न एहतराम समझता है, हर शख़्स तुझे नाकाम समझता है। तेरी फ़ितरत है …
कर्म लिखई बिन कागज हीे - सवैया छंद - देवेश बाजपेयी
कर्म लिखई बिन कागज ही, इक तोरी चलई न कोई होशियारी। साक्ष्य बने बिन आनन ही, चाहें लाख करो जिन बात हमारी॥ गणना करे बिन गणना ही, जैसे सूर…
तुम हो, तुम्हारी याद है - कविता - प्रवीन 'पथिक'
तुम हो, तुम्हारी याद है और क्या चाहिए! दिल में एक जज़्बात है, और क्या चाहिए! हृदय में उमड़ता सागर है, बहते ख़्वाबों के झरने हैं। तुझे …
कविताएँ - कविता - सुनील कुमार महला
हर ऱोज साधना का चरम फल प्राप्त करतीं हैं कविताएँ भावनाओं को ब्रह्म पर केन्द्रित करना आसान काम नहीं है असाधारण महागाथा कविताएँ जब गातीं…
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