न एहमियत न एहतराम समझता है - ग़ज़ल - रज्जन राजा

अरकान : मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन फ़ा
तक़ती : 1212 1212 1212 2

न एहमियत न एहतराम समझता है,
हर शख़्स तुझे नाकाम समझता  है।

तेरी फ़ितरत है सबकी मदद करना,
जमात इस सबब बेकाम समझता है।

जो रास्तों की ठोकरें सहकर बढ़ा,
वही मंज़िले मुकाम समझता है।

इश्क़ में गुफ़्तगू का कोई काम नहीं,
दिल आँखों का पैग़ाम समझता हैं।

चाहे जान की बाजी लगा दो मगर,
ख़ुदग़र्ज़ कब एहसान समझता है।

तेरी सच बयानी के चलते 'रज्जन',
ज़माना तुझे बदनाम समझता है।

रज्जन राजा - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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