तुम हो, तुम्हारी याद है - कविता - प्रवीन 'पथिक'

तुम हो, तुम्हारी याद है 
और क्या चाहिए!
दिल में एक जज़्बात है,
और क्या चाहिए!
हृदय में उमड़ता सागर है,
बहते ख़्वाबों के झरने हैं।
तुझे पाने की ख़्वाहिश है,
औ उठते हृदय में तरंगे हैं।
ग़म के बादल छाते है,
ऑंखें अश्रु बहाती है।
चाॅंदनी नभ में हँसती है,
औ तू चुपके से आती है।
जीवन में तेरा साथ है,
और क्या चाहिए!
तुम हो, तुम्हारी याद है
और क्या चाहिए!
प्रेम एक परिभाषा है,
तू ही जीवन आशा है।
धैर्य टूटता संबल का,
देती तू ही दिलासा है।
तू ही मेरी कल्पना थी,
बिन तेरे कल्पना था।
हर तरफ़ ही धोखा था,
ना ही कोई अपना था।
तुझसे ही मर्याद है 
और क्या चाहिए!
तुम हो, तेरी याद है,
और क्या चाहिए!!

प्रवीन 'पथिक' - बलिया (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos