प्रीति के रंग - सरसी छंद - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'

भीनी-भीनी सुगंध लेकर,
आयी पुरवा द्वार।
तन मन भीगे-भीगे दिखते,
दिलों प्रेम संचार॥

अंगन-अंगन हलचल दिखती,
प्यार-मुहब्बत साथ।
प्रेम-प्यार मनुहार डूबते,
दुश्मन ठोके माथ॥

प्यार मुहब्बत भरकर दिल में,
साली करें सवाल।
बीच अँगनियाँ मारे ठुमका,
काटें दिलों बबाल॥

जीजा भी मित्रों कम नाही,
बिछवावति दिल जाल।
जीजा साली बनते दिखते,
जिऊ का हैं जंजाल॥

जीजा साली खेलि रहे हैं,
छुआछम्बरी द्वार।
एक दूजे को भरि-भरि कौरी,
प्रीति डालते हार॥

भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क' - शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश)

Join Whatsapp Channel



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos