सत्य से जुड़ा सदैव ही रहा हूँ जीवन में,
झूठ की कुसंग बचपन से रही नहीं।
अधिकार छीनते जो उनसे लड़ा हूँ किंतु,
धर्म के विरुद्ध शक्ति तन में रही नहीं।
प्यास उमड़ी तो बूँद को प्रणाम कर मिला,
अभिमान दृष्टि आचमन से रही नहीं।
शत्रु के समक्ष शत्रु का विरोध, उपरांत–
प्रतिशोध भावनाएँ मन में रही नहीं।
अभिषेक बाजपेयी - सीतापुर (उत्तर प्रदेश)