कर्म लिखई बिन कागज ही, इक तोरी चलई न कोई होशियारी।
साक्ष्य बने बिन आनन ही, चाहें लाख करो जिन बात हमारी॥
गणना करे बिन गणना ही, जैसे सूर के बालक की महतारी।
"देव" कहे एक कर्म है राजा, उसके आगे सब कंक भिखारी॥
साधनहीन विहीन दुखीन मलीन रहे नित दृश्य ही सारे।
केश बना शृंगार करें, अपनी हम मातु के राज दुलारे॥
आजउ डीठि उतारि धरै, उस नेह से हमैं नित्य सुधारे।
देव बखान कहाँ लौ करै, महतारी का प्रेम जो पार उतारे॥
देवेश बाजपेयी - सीतापुर (उत्तर प्रदेश)