संदेश
समय - कविता - अरुण ठाकर "ज़िन्दगी"
मैं वही पल वही लम्हा वही खुशी वही गम हूँ । उम्र की हर खास आम वक्त की कड़ी हूँ । सफ़र की हर रफ़्तार का गवाह हूँ यकी कर । मैं ज़िन्दगी के …
तुम्हारी यादें - कविता - कुन्दन पाटिल
हर क्षण, हर पल हर कही हर जगह केवल और केवल तुम्हारी ही यादें। दूर हो प्रिय तुम पर पास है मेरे सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी ही यादें। दर्द यह…
वो - कविता - वरुण "विमला"
मैं कुछ यूँ जानता हूँ उसकी खूबसूरती को, जैसे दाल में लगा दिया गया हो देसी घी का तड़का। बैठकर मेड़ पर, आराम करते हुए दिख जाए नाचता मोर। …
खेतों के भगवान देश के किसान - कविता - हरिराम मीणा
धान उगाता पेट जो भरता मान नही किसान का। नेता दुश्मन बन बैठे है आज उसी की जान का ।। किसान चल रहा कांटो पर और नेता वायुयान से। खिलवाड़ ह…
लॉकडाउन और बढ़ती बेरोज़गारी - निबंध - संस्कृती शाबा गावकर
क्या कोरोना के फैलने के खौफ से देशभर में लॉकडाउन की स्थिति पैदा कर बेरोज़गारी को जन्म दिया? दुनियाभर में फैले कोरोना वायरस को विश्व स्व…
तन पर यौवन - कविता - ममता शर्मा "अंचल"
ओ रे बचपन फिर से सच बन मायूसी में खामोशी में चिंताओं में दुविधाओं में निर्धनता में नीरसता में पीर भुलाकर कर पुलकित मन ओ रे बचपन तू न…
मूसे - गीत - रविकांत सूर्यवंश "ग़ाफ़िल"
दो मांगे की रोटी खाकर, जब भूखा सो जाता मूसे। इस समाज के दायित्वों पर, प्रश्नचिन्ह हो जाता मूसे। नाम मात्र कपड़ों में लिपटी, नाम मात्र…
सेवा और रिश्ता - लघुकथा - उमाशंकर मिश्र
गुलाबी ठंडक पड रही थी और कोरोना के वजह से गाँव की पगडंडी पर कोई वाहन नही था आखिर लॉक डाउन का मतलब क्या है एक बुजुर्ग को एक युवा दंपति …
माँ तेरा ख़्याल हैं - कविता - कर्मवीर सिरोवा
उदास शाम हैं न रंग हैं न छाँव हैं, मैं तन्हा हूँ, न पास शहर हैं न गाँव हैं।। मैं रो दूँ वक़्त, तुझमें न इतना जोर हैं, हँसा दे जिगरी व…
उलझन सी पीड़ा हूँ - कविता - मयंक कर्दम
मैं लाचारी सी आशा हूँ, इन कट पुतली की भाषा हूँ। अरब-खरब की अमृत सी, वेदों की परिभाषा हूँ, काट-काटकर बेच दिया है, जिन विदेशों के अखबा…
तेरे चेहरे के सिवा - कविता - कपिलदेव आर्य
इक तेरे चेहरे के सिवाय, कुछ और भाता नहीं, तेरा प्यारा सा मुखड़ा, मैं कहीं देख पाता नहीं! तू समा चुकी है मेरी नस-नस में, प्राण बनकर, …
माँ होती है प्रकृति जैसी - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
माँ शब्द अपने आप में इतना वृहत इतना जटिल तम शब्द है जिसपर व्यख्यान करने मे सदियाँ भी कम पड़ जाएंगी। यह छोटा सा शब्द जिसने सारे संसार को…
सोच सदा जग स्वस्ति की - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
जय सुधीर गंभीर नर, उद्यमशील विनीत। सफल कीर्ति अनमोल धन, निशिचन्द्र मधुप्रीत।।१।। अर्थ बने सम्बन्ध के, अपनापन विश्वास। साथ खड़े सुख त्र…
माँ मुझको जन्म लेने दो - कविता - अंकुर सिंह
माँ मुझको आज जन्म लेने दो, खुली हवा में खुलकर जीने दो। आज भ्रूण हत्या से बचा मुझे, गर्भ के बाहर मुझको आने दो।। मैं कल्पना बन अंतरिक्ष …
लोग - कविता - कुन्दन पाटिल
आपकी-मेरी, इधर-उधर की। न जाने क्या क्या बातें करते लोग।। सुख अपनो का पचा नहीं पाते। दूख में कभी काम न आते लोग।। अपने हाथों अपना सुख-चै…
प्रकृति दृश्यमय है - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
प्रकृति का वह दृश्य नवेला युगो युगो के जैसा था वह जैसा कल देखा था मैंने उदयाचल में लाल था गोला पल-पल बढता देखा मैंने। आसमान के मेघा…
अध्यक्षीय भाषण - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
हिन्दी दिवस आयोजन के अध्यक्ष महोदय ने अपने भाषण में कुछ यूं कहा संजीदगी से कि मैनें अपने बाल नोच लिए बेचारगी से मैं आपका हिन्दी डे क…
हकीकत ए ज़िन्दगी - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
हसरतें बढती गई हौसला बढता गया शर्तों की ए जिन्दगी बस हाशिया बढता गया।। कुछ कर गुजरने की राह पर यू ही हरकते बढती गयीं हासिल से हकीकत का…
अकेले में - कविता - प्रवीन "पथिक"
अकेलेपन की गहन निशा में, अनिमेष देखता हूँ एक सपना कि, डूब रहा हूँ गहरी खोह में; पाताल की गहराइयों में, धँसता, निष्प्राण काया लिए, बढ़त…
अरुणाभ बना मैं शिक्षक हूँ - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
उत्थान सतत विज्ञान जगत अरुणाभ बना शिक्षक मैं हूँ। हर तमोगुणी आलोक विरत, निशिचन्द्रप्रभा सोमाकर हूँ। …
बेरोज़गारी - कविता - डॉ. राजकुमारी
पीठ पर बेरोज़गारी का फोड़ा निकला धेर जगह मवाद लिए दिनो दिन बढ़ रहा है ये आहिस्ता-आहिस्ता कुलमुलाने लगेगी, देखना, पीड़ा फिर अत्यधिक विस…
बेचारे बेरोजगार - कविता - प्रशान्त "अरहत"
बहुत भोले होते हैं बेचारे बेरोज़गार! वे नहीं जानते लड़ना; अपने रोज़गार। शिक्षा, स्वास्थ्य और अपने हक़ के लिए। तभी वंचित रहते हैं। तमाम सर…
सब सुलझा लगता हैं - कविता - कर्मवीर सिरोवा
मसअला कई हैं मेरे ज़ेहन-ओ-दिल में, तू पास आ जाये तो सब सुलझा लगता हैं। हक़ीक़त की जमीं ख़्वाबों को देनी ही नहीं, इस बाहर की दुनिया से ब…
प्यार वो फूल है - कविता - चीनू गिरि
प्यार वो फूल हैं ... जो एक बार खिल जाए तो, उम्र भर महकता रहता हैं !! ये कभी मुरझाता नही, सदाबहार हैं, हर मौसम मे खिला रहता हैं !! मन क…
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