संदेश
लौटे बचपन दीन का - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
दोहन होती दीनता, दोहन नित अरमान। झेले जग अवहेलना, दास भाव अपमान।।१।। लोक लाज भयभीत मन, पाले भय मनरोग। दिवस रात्रि मेहनतकशी, भूख प्यास…
भावों का सागर हिंदी - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
भावों का सागर है हिंदी सागर में डुबकी लगा जाओ तुम गीत नया फिर गा जाओ, सरसों के खेतों में जब तुम मिल जाती हो धीरे से पीली किरणें लहर…
आखिर क्यों - कविता - रमाकांत सोनी
ना जाने कितनी आँधियाँ आई, जाने कितने ओले बरसे, कितने तूफ़ानों ने रुख़ किया, मेरी ओर आखिर क्यों? ना जाने क्यों ईश्वर परीक्षा लेता है, धी…
चुप रहती है शमा - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
लोगों के मुँह से हमने हैं सुना जल मरता है परवाना चुप रहती है शमा। न वो प्यार रहा न रही वो प्रीत वफ़ाई, हर दीवाना लैला मे हैं रमा। बसा क…
नीला आसमान - गीत - संजय राजभर "समित"
नम्र होकर, ऊँचा उठो, करो सबका सम्मान। दूर क्षितिज से कहता है, यह नीला आसमान।। सबल भावना परहित की ह्रदय में रखना साज, सम भाव प्रकृति दु…
भारत की बिन्दी - कविता - विनय विश्वा
मैं हिन्दी हूँ जननी जन्मभूमि मातृभाषा हूँ खड़ी बोली खड़ी होकर मर्यादित, अविचल आधार हूँ मैं भारत का श्रृंगार हूँ। इतिहास से लेकर अब तक…
साहस व बुद्धिमत्ता का सृजन करती हैं समस्याएं - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
जब तक मनुष्य है उसके पास चिंतन है, विचार है, तब तक समस्याएं तो रहेंगी ही। यदि व्यक्ति गहरी नींद में सो जाये, चिंतन बंद हो जाए प्रलय हो…
गुरु महिमा है अतिगहन - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
मातु पिता भाई समा, मीत प्रीत गुरु होय। सदाचार परहित विनत, समरसता गुरु सोय।।१।। लोभ मोह मद झूठ को, अन्तर्मन तज धीर। त्याग शील गुण …
आओ मिलकर साथ चले - कविता - नीरज सिंह कर्दम
कुछ दूर तुम चलो कुछ दूर हम चले, मिलकर ये दूरियाँ तय हो जाएँगी। कुछ बोझा तुम उठाओं, कुछ हम उठाएँ, ये बोझा भी कम हो जाएगा। कुछ तुम कहो, …
प्रकृति की सुंदरता - कविता - पारो शैवलिनी
यौवन की रोशनी में तेरे मन का दर्पण विश्वास जताया है मेरे एहसास पर। अगर सजा दे, अपने रंगों को मेरे भावनाओं की तुलिका तेरे चेहरे के कै…
क़ामयाबी - कहानी - अंकुर सिंह
ठाकुर वंशीलाल हीरापुर गाँव के बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, साथ में क्षेत्र के कई गावों में ठाकुर साहब की सामाजिक और राजनीतिक हैसियत भी …
अश्रु भी बनता जा रहा पानी - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"
जीवन की इस भागमभाग में, संवेदनाएं बन चुकी निर्जीव कहानी। अपने अपनों से ही विमुख हुए, अश्रु भी बनता जा रहा पानी। स्वार्थ के हैं सब …
आरज़ू - ग़ज़ल - विनोद निराश
ज़िंदगी यूँ ही चलती रहे, आरज़ू यूँ ही पलती रहे। नाम तेरा ही लेकर बस, साँसें मेरी ये चलती रहे। रूठ गए जो तुम कभी, शायद कमी खलती रहे। तु…
खूबसूरती - कविता - तेज देवांगन
खूबसूरती उस बेवक़्त फूलो की तरह है, जो कभी कली हुआ करती थी। मधुवन के बागों में मिला करती थी, भोरे जिस पर मंडराते, तितलियाँ गाया करती थ…
ईश्वर का धन्यवाद - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
आइए! ईश्वर का धन्यवाद करते हैं, अपने अंदर बैठे ईश्वर को नमन करते हैं। ईश्वर ने हमें वो सब दिया जो हमारी ज़रूरत है, पर हमनें वो नहीं क…
नव उमंग नवरस भरते हैं - मुक्तक - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
हम सतरंगी अरुणाभ पटल जग, नित स्वागत अभिनंदन करते हैं। द्रुतगति विकास नीलाभ पथिक बन हम नव उमंग नवरस भरते हैं। नित …
प्यार देना ही है तो - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
अगर तुम्हें प्यार देना ही है तो क्यों नहीं- आम का बौर बन किसी मानव में व्याप्त बिच्छू के विष को दूर कर राहत की साँस दो। अगर प्यार देन…
काँटों भरी राह - कविता - अन्जनी अग्रवाल "ओजस्वी"
काँटों भरी राह मुझे चलने दो। सदियों से बंधी पाँव बेड़ियाँ। तोड़ बेड़ी मशाल प्रव्जलित करने दो।। मुझे काँटों भरी राह चलने दो। हवा रुख बदलत…
डूबती सभ्यता - कविता - अभिषेक अजनबी
कट रहे वृक्ष पंक्षी किधर जाएँगे। आसमाँ से ज़मी पर उतर आएँगे। अब अनारों से छिलके हटाओ नहीं, दाने दाने निकल कर बिखर जाएँगे। संस्कृति का ह…
वह थका हारा - कविता - महेश "अनजाना"
जीवन के संघर्ष से लड़ लड़ कर थका हारा सा मायूस होकर वह अकेले में सोचता रहा। कैसे लड़ी जाए ये लड़ाई। रात भर जागता रहा। आँखों में नींद…
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