भावों का सागर है हिंदी
सागर में डुबकी लगा जाओ
तुम गीत नया फिर गा जाओ,
सरसों के खेतों में जब तुम
मिल जाती हो धीरे से
पीली किरणें लहराती हैं
मनभावन की सारी बतिया
वो गीत नए दोहराती हैं।
अरहर के खेतों में
नीम की निमकौरी में
और पलाश के पत्तों में,
जब हवा डोलती है सरपट
पीपल संगीत बजाता है
तुम्हें पास वो लाता है।
मनभावन के सागर में
हिंदी ही पास बुलाती है
संगीत नये दोहराती है,
भावों का सागर है हिंदी
तुमको फिर पास बुलाती है।
कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी - सहआदतगंज, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)