कुछ दूर तुम चलो कुछ दूर हम चले,
मिलकर ये दूरियाँ तय हो जाएँगी।
कुछ बोझा तुम उठाओं, कुछ हम उठाएँ,
ये बोझा भी कम हो जाएगा।
कुछ तुम कहो, कुछ हम कहें,
कहना भी मुश्किल ना हो पाएगा।
कुछ उजियारा तुम करो, कुछ उजियारा हम करें,
ये अंधियारा भी मिट जाएगा।
आओ मिलकर साथ चले...
राहों में है काँटे अनेक
चलना जब मुश्किल हो जाएगा,
कुछ काँटे तुम हटाओ, कुछ हम हटाएँगे,
ये रास्ता भी खुल जाएगा।
कुछ मेहनत तुम करो, कुछ मेहनत हम करें,
अपना भी एक आशियाना बन जाएगा।
कुछ खुशियाँ तुम दो, कुछ खुशियाँ हम दें,
अपना भी आशियाना खुशियों से भर जाएगा।
आओ मिलकर साथ चले...
नीरज सिंह कर्दम - असावर, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)