चुप रहती है शमा - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

लोगों के मुँह से
हमने हैं सुना
जल मरता है परवाना
चुप रहती है शमा।
न वो प्यार रहा
न रही वो
प्रीत वफ़ाई,
हर दीवाना
लैला मे हैं रमा।
बसा के
अपने लम्हो मे
करते है वादा
उम्र भर का।
खाते है क़समें
बहाते है आँसू,
ऊब जाते
न साथ दे पाते।
प्यार कि डगर का।
उनका कैसे करें एतवार
खुशियों मे साथ चलते,
दुःख मे रहते हैं जमा।
लोगों के मुँह से
हमने हैं सुना
जल मरता है परवाना
चुप रहती है शमा।
पीड़ा देकर
चल पड़े यों
मानो
इन्हें कुछ
हुआ ही नहीं।
किसी की जान
घुट रही है
कोई आहों मे डूबा,
फिर भी प्यार
सर सब्ज़ नहीं।
आशिक़ समझा
वो मेरी
मैं उसका
पर शमा का
दिल किसी और
मे हैं रमा।
लोगों के मुँह से
हमने हैं सुना 
जल मरता है
परवाना,
चुप रहती है शमा।

रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

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