साहस व बुद्धिमत्ता का सृजन करती हैं समस्याएं - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला

जब तक मनुष्य है उसके पास चिंतन है, विचार है, तब तक समस्याएं तो रहेंगी ही। यदि व्यक्ति गहरी नींद में सो जाये, चिंतन बंद हो जाए प्रलय हो जाए तो संभव है समस्याएं नहीं रहें, अन्यथा समस्याएं तो रहेंगी ही।

विंस्टन चर्चिल का कथन है कि, आशावादी व्यक्ति हर आपदा में एक अवसर देखता है जबकि निराशावादी व्यक्ति हर अवसर में आपदा देखता है।
सच तो यह कि 95% समस्याएं हमारे मन से उत्पन्न होती हैं। जटिल और मूल समस्या है मन की।

घर में धन दौलत ,पुत्र ,परिवार स्वास्थ्य सब कुछ होते हुए भी कलह है, भाई भाई में झगड़ा है।
जहाँ संपन्नता ज्यादा है वहाँ झगड़े और अशांति भी अधिक है। जिनके घर में अभाव है वहाँ झगड़े कम होते हैं।
इससे स्पष्ट है कि जिसके लिए झगड़े होते हैं वह चीज अभाव ग्रस्त घरों में है ही नहीं।
तो जाहिर है कि समस्या भौतिक पदार्थों की ही नहीं मन की भी है। क्रोध, लोभ, मोह, वासना, घृणा, ईर्ष्या, शोक आदि मन के ये आवेग जब तक जीवित है तब तक समस्याएं सुलझने वाली नहीं।

कुछ लोग परिवार में, मित्रों में इसी बात का रोना रोते रहते हैं कि उनकी समस्याएं कितनी पेचीदी व कितनी दुःखदायक हैं। उनकी दृष्टि में यह समस्याएं ना होती तो जीवन सुखद होता।

हमारा जीवन दुखी और कठिन इसलिए है कि हम समस्याओं का सामना करने व उन्हें सुधारने को एक पीड़ादायक प्रक्रिया मानते हैं।
जबकि ऐसा नहीं होता, समस्या है तो उनका समाधान भी होता है। समस्याओं को आप किस नज़रिए से देखते हैं उसी आधार पर उनके समाधान भी सरल या जटिल प्रतीत होते हैं। समस्याएं आकाश की तरह बनने पर ही मिट सकती हैं, मिटाई जा सकती हैं।

सफलता के लिए मनुष्य का सबसे अहम संघर्ष समस्या से निपटारा करना रहता है।
अब सवाल यह उठता है कि समस्याओं का मूल कहाँ है? समस्याओं रूपी चुनौतियों का सामना करने व उन्हें सुलझाने में जीवन का एक अर्थ छुपा हुआ है। समस्याएं तो दुधारी तलवार की तरह होती हैं। वे हमारे साहस व  बुद्धिमत्ता को ललकारती हैं। और दूसरे शब्दों में साहस और बुद्धिमत्ता का सृजन भी करती हैं समस्याएं।

मनुष्य की तमाम उपलब्धियों का मूल समस्याऐं ही होती हैं। यदि जीवन में समस्याएं ना होतीे तो हमारा जीवन नीरस और जड़ होता।
प्रख्यात लेखक फ्रेंकलिन ने सही कहा था की, जो बात हमें पीड़ा पहुँचाती है वही हमें सिखाती भी है।
इसलिए समझदार लोग कभी भी समस्याओं से डरते नहीं उनसे दूर नहीं भागते, बल्कि समस्याओं को आगे बढ़कर गले लगाते हैं। जैसे कोई जवान मर्द बैल से डरकर नही भागता बल्कि आगे बढ़कर उसके सींग को पकड़ता है, उस से जूझता है, उस पर काबू करता है।

हम सब के लिए ऐसे ही उत्साह, ऐसी ही ललक, ऐसी ही बुद्धि की जरूरत होनी चाहिए समस्याओं से जूझने के लिए।  पर अधिकांश लोग इतने बुद्धिमान व जुझारू नहीं होते, इतने उत्साह से नहीं भरे होते हैं। वह नहीं समझते कि समस्या में छिपे दर्द से कैसे निपट सकें। अंततोगत्वा वह हार कर इन समस्याओं से निपटने के लिए शराब, सिगरेट, नींद की गोलियों का सहारा लेते हैं।
जबकि समस्याओं की अनदेखी और नशे का सहारा मानसिक रुग्णता का मूल कारण है।

जिंदगी कठिन है अधिकांश लोग यह नहीं देख पाते या देखना नहीं चाहते। मानसिक रुग्णता के तो हम सभी थोड़ा बहुत शिकार है कोई थोड़ा ज्यादा कोई थोड़ा कम। परंतु यह भी किसी ने सच ही कहा है कि हर मुश्किल के पत्थर को बनाकर सीढियां अपनी, जो मंजिल पर पहुँच जाएँ उसे इंसान कहते हैं।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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