आखिर क्यों - कविता - रमाकांत सोनी

ना जाने कितनी आँधियाँ आई,
जाने कितने ओले बरसे, 
कितने तूफ़ानों ने रुख़ किया,
मेरी ओर आखिर क्यों?

ना जाने क्यों ईश्वर परीक्षा लेता है,
धीरज मन वचन कर्म की,
इंसानियत के धर्म की,
कड़ी परीक्षा आखिर क्यों?

ना जाने लोग क्यों गटक जाते हैं,
दूसरों की कड़ी मेहनत का धन,
ईमानदारी से की गई मज़दूरी भी,
बेखौफ़ होकर आखिर क्यों?

ना जाने कितने लोग यातना सहते,
सड़क किनारे पड़े रहकर, 
सर्दी गर्मी बरसात सहकर,
बेबसी लाचारी आखिर क्यों?

ना जाने कितने पतझड़ आए,
जाने कितने फूल मुरझाए,
कितनी कलियाँ नोच ली गई,
सड़को पर राहों में आखिर क्यों?

ना जाने कितने गीत गुनगुनाए,
जनमानस में रंगे कितने छाए,
कवि ह्र्दय कल्पना करता रहा,
बदलावों की आखिर क्यों?

रमाकांत सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)

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