लौटे बचपन दीन का - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

दोहन होती  दीनता, दोहन नित अरमान।
झेले जग अवहेलना, दास भाव अपमान।।१।।

लोक लाज भयभीत मन, पाले भय मनरोग।
दिवस रात्रि मेहनतकशी, भूख प्यास दुर्योग।।२।।

कैसी यह स्वाधीनता, कैसी यह सरकार।
नंगे भूखे छत विरत, कबतक हो लाचार।।३।।

बदनसीब  बचपन  यहाँ, भूख  प्यास  संत्रस्त।
कहाँ भाग्य काया वसन, आर्त भाव भय ग्रस्त।।४।।

कहाँ  पैर  में  जूतियाँ, तलवे   चकनाचूर।
पढ़ना कहँ तकदीर  में, जो रोटी मज़बूर।।५।।

जो बचपन उल्लास का, खेल कूद मुस्कान।
जठरानल  मज़दूर बन, बदनसीब  सन्तान।।६।।

कहाँ मिले किलकारियाँ, बचपन मन संगीत।
कोमल किसलय बचपना, मजदूरी बस मीत।।७।।

चकाचौंध जग प्रगति को, तरस रहा बस नैन।
सिमट भाव नैनाश्रु बन, दुखद दीन कहँ चैन।।८।।

व्यर्थ राष्ट्र धन सम्पदा, सकल सौख्य संसाध।
लावारिस जब बचपना, पड़ी सड़क निर्बाध।।९।।

बदनसीब   वह   देश    है,  बदनसीब   समाज।
बचपन क्षतविक्षत जहाँ, क्या विकास आगाज़।।१०।।

कब  तक  दोहन दीनता, दीन बहुल समाज।
शासन का दायित्व यह, सर्व प्रगति आगाज।।११।।

लौटे  बचपन  दीन  का, हो  खुशियाँ   सम्मान।
शिक्षा हो सब जन सुलभ, पूर्ण सुखद अरमान।।१२।।

लखि निकुंज लुटता चमन, बचपन का कल्लोल।
लौटाओ   सरकार  अब, यह   बचपन  अनमोल।।१३।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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