संदेश
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २२) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(२२) चंपारण विद्रोह, रहा था जब तक जारी। गाँधी राँची शहर, पधारे बारी-बारी। आंदोलन पश्चात, पुनः राँची में आए। टाना भगतों साथ, विदेशी…
हे भारती हर क्लेश जग - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
पूजन करूँ मैं आरती, नित शारदे माँ भारती। चढ़ सत्यरथ नित ज्ञानपथ, श्वेतवसना सारथी।। हे सर्वदे सरसिज मुखी तिमिरान्ध जीवन दूर कर। वीणा नि…
याद कोई मुझको आता है बहुत - ग़ज़ल - मोहम्मद मुमताज़ हसन
याद रह रह के कोई मुझको आता है बहुत! प्यार उसका मेरे दिल को तड़पाता है बहुत! कह हवाओं से चरागों ने खुदकुशी कर ली, अज़ाब-ए-तीरगी आके अब…
प्यार की राह - कविता - अतुल पाठक "धैर्य"
जब कोई शख्स अपना लगने लगता है, हाल-ए-दिल को अच्छा लगने लगता है। मन की बात छुपते नहीं छुपती, जब मन झलक दिखलाने लगता है। बस वही इक च…
जल संरक्षण, जन ज़रूरत - लेख - अंकुर सिंह
हम जिस देश में रहते है उस देश के प्रमुख शहरों और वहां के सभ्यता को विकसित करने में नदियों का महत्वपूर्ण भूमिका है और नदियों का अस्तित्…
अवार्ड वापसी - कविता - सौरभ तिवारी
सम्मान वापसी, उचित नहीं ये राष्ट की आन हैं। जिसे मिले मानद रतन कुछ विरले ही इंसान है।। स्वर विरोध के प्रबल करो ये नैतिक अधिकार है। सम्…
कुछ ख़्वाब - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
कुछ ख़्वाब गढ़ने हो नये तो त्याग होना चाहिए, उसमें समर्पित भाव का भी मर्म होना चाहिए, जितने नयन मे ख़्वाब हैं पूरे ही होने चाहिए, न…
लफ़्ज़-ए-ज़िन्दगी - कविता - तेज देवांगन
कहानी तो हमने भी बहुत लिखे, पर सारे फसाने निकले। कुछ मनगढ़ंत, तो कुछ दीवाने निकले। अफसोस ये नहीं, गाँव छोड़ शहर आए। पर शहर भी, बेगाने…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २१) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(२१) बीती काली रात, गए छुप चाँद-सितारे। लेकर नवल प्रभात! गगन पे मिहिर पधारे। बोल पड़े इसबार, स्वयं लब अपना खोले। स्वाधीनता बयार, दे…
ख़ामोश - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
मिले बरक्कत जिंदगी, रहें सदा ख़ामोश। नज़र रखें चारों तरफ़, रहें होश अरु जोश।।१।। खामोशी कमजोरियाँ, बनें नहीं इन्सान। सही राह बन हमसफ़र, …
आओ बिखेरे प्यार की खुशबू - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"
बिखरे हुए अरमानों को प्रेम से जोड़, आशाओं की फिर से उम्मीद जगा दे। आओ बिखेरे हम, प्यार की खुशबू, टूटे हुए दिलों में मरहम लगा दे। …
सोच लिया - गीत - महेश "अनजाना"
अब ना लिखेंगे खत तुमको कभी। ना करेंगे मुहब्बत, तुमको कभी। वफ़ा तो कभी न तूने है निभाई। न मुझको पता कि तू है हरजाई। ना रहेगी…
ग़रीबी और लाचारी - कविता - अन्जनी अग्रवाल "ओजस्वी"
हाय ये कैसी, ग़रीबी व लाचारी। बना रही उसके जीवन को दुधारी।। क्या अजब, होती है ये ग़रीबी। न बढ़ाता कोई रिश्ता क़रीबी।। ग़रीबी की नही कोई…
मेरी प्रीत - कविता - प्रवीन "पथिक"
पता नहीं! इस समय क्या हो रहा है मेरे साथ? हर क्षण तेरी ही याद आती है। चाहें घर रहूँ; काॅलेज हो या फिर खेतों पर, कहीं भी तेरी स्मृति पी…
मन भायो कहां व्रंदावन में - सवैया छंद - राहुल सिंह "शाहावादी"
मन भायो कहां व्रंदावन में, जहां कंट करीलन कै डगरी री। छछिया भरि छाछ है मांगि रहै, जो है दूध दही मख कै नगरी री।। कतरानी फिरै सब संग सखी…
ज़िंदगी - ग़ज़ल - अभिनव मिश्र "अदम्य"
जिंदगी बेशक़ बिताना चाहता हूँ। रास्ता खुद से बनाना चाहता हूँ। दूरियां है क़ामयाबी में सदा ही मंजिलों को आज पाना चाहता हूँ। क़ामयाबी को सद…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २०) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(२०) हे कृपालु जगपाल! किरण पट अपना खोलो। बँटवारा बंगाल, प्रभावी क्यों था बोलो? क्यों बंगीय समाज, उग्र हो गई भयानक? हो भारत आजाद, म…
पिता - कविता - विकाश बैनीवाल
साम-दाम-दंड-भेद के जो हकदार, सदैव पिताजी को सादर नमस्कार। भितर से कोमल बाहर से फटकार, मेरे पिताजी के चरणों में सत्कार। पिता जोश है…
मरघट का सन्नाटा - कविता - अशोक योगी "शास्त्री"
मन कुंठित, व्यथित, हां व्याधित, तुम कुछ कहना चाहते हो मगर यह तूष्णीम् है मरघट के सन्नाटे की मानिंद सुनाना चाहते हो आध्यात्म का नाद …
संस्कार और संस्कृति - लेख - सुधीर श्रीवास्तव
कहने के लिए तो ये दो मात्र साढ़े तीन अक्षरों वाले शब्द मात्र हैं परंतु इनकी गहराई और व्यापकता बहुत उच्च भाव का प्रकटीकरण करती है। हमें …
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