अशोक योगी "शास्त्री" - कालबा नारनौल (हरियाणा)
मरघट का सन्नाटा - कविता - अशोक योगी "शास्त्री"
बुधवार, दिसंबर 16, 2020
मन कुंठित,
व्यथित,
हां व्याधित,
तुम कुछ कहना
चाहते हो मगर
यह तूष्णीम् है
मरघट के सन्नाटे
की मानिंद
सुनाना चाहते हो आध्यात्म
का नाद मुझे,
मगर मौत की खामोशियों
ने आलिंगन में कसकर
जकड़कर रखा है मुझे
मेरे अंतर्मन में झांकने का
प्रयास तुम्हारे लिए
मृगमरिचिका साबित ना हो
अत: त्यागकर कस्तूरी निर्रथक
प्रयास अपने कर्तव्य पथ पर
बढ़ हे पथिक...
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