ज़िंदगी - ग़ज़ल - अभिनव मिश्र "अदम्य"

जिंदगी बेशक़ बिताना चाहता हूँ।
रास्ता खुद से बनाना चाहता हूँ।

दूरियां है क़ामयाबी में सदा ही
मंजिलों को आज पाना चाहता हूँ।

क़ामयाबी को सदा देखें जमाना
ख़्वाब ऐसा मैं सजाना चाहता हूँ।

हो रहे मशहूर दुनियां में सभी ही
नाम अब मैं भी कमाना चाहता हूँ।

जो भरी उर नफ़रतें वो सब मिटाके
प्रेम का दीपक जलाना चाहता हूँ।

है हमारे पास दौलत तो बहुत पर
आज से इज्ज़त कमाना चाहता हूँ।

ठोकरे खाई सदा ही हर कदम पर
ज़ख्म सारे वो भुलाना चाहता हूँ।

दूर जाकर इस चमन से आज "अभिनव"
आशियाँ खुद का बसाना चाहता हूँ।

अभिनव मिश्र "अदम्य" - शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश)

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