मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २०) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(२०)
हे कृपालु जगपाल! किरण पट अपना खोलो।
बँटवारा बंगाल, प्रभावी क्यों था बोलो?
क्यों बंगीय समाज, उग्र हो गई भयानक?
हो भारत आजाद, महज़ क्या था इक मकसद?


बोल पड़े जगपाल, तनिक होकर उत्तेजित।
बँटवारा बंगाल, क्षेत्र को किया प्रभावित।
नेता गणेश चंद्र, सदल राँची में छाए।
होगा देश स्वतंत्र, लिए प्रण आगे आए।।


श्रीमंत अमरनाथ, घोषणा कर दी जारी।
बिन हुए रक्तपात, कठिन आजादी भारी।
पर्ची क्रिस्टो राय, गिरिडीह में चिपकाए।
हेमंत बोस स्वयं, सतत राँची में आए।।


थे हुए गिरफ्तार, रामविनोद सिंह जी भी।
श्यामकृष्ण सहाय, वापसी लंदन से की।
गाँधी ततपश्चात, शहर राँची में आए।
चंपारण विद्रोह, रूपरेख यथा बनाए।।


इतना कह मंदार, पछिम में पाँव बढ़ाए।
छा गया अंधकार, चाँद-तारे मुस्काए।
कल आना करतार! वायदा करते जाओ।
ममता करे गुहार, मिहिर! अथ कथा सुनाओ।।


डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)


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