ग़रीबी और लाचारी - कविता - अन्जनी अग्रवाल "ओजस्वी"

हाय ये कैसी, ग़रीबी व लाचारी।
बना रही उसके जीवन को दुधारी।।


क्या अजब, होती है ये ग़रीबी।
न बढ़ाता कोई रिश्ता क़रीबी।।


ग़रीबी की नही कोई तकदीर।
सम्मान का सौदा करते अमीर।।


देखो ग़रीबी की लाचारी।
इन्सानित भी पड़ रही भारी।।


नैतिक मूल्यों का, देकर हवाला।
कराते काम, अनैकिकता वाला।।


देखो, ग़रीबी की लाचारी।
देती दुहाये भी, भारी भारी।।


नही लड़ते बच्चे विरासत के वास्ते।
दिनभर जो मिला सो खाया।
दिए चल अपने अपने रास्ते।।


अन्जनी अग्रवाल "ओजस्वी" - कानपुर नगर (उत्तर प्रदेश)


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