मेरी प्रीत - कविता - प्रवीन "पथिक"

पता नहीं!
इस समय क्या हो रहा है मेरे साथ?
हर क्षण तेरी ही याद आती है।
चाहें घर रहूँ; काॅलेज हो या फिर खेतों पर,
कहीं भी तेरी स्मृति पीछा नहीं छोड़ती।
कभी-कभी तो लगता है
कोई इंसान ही नहीं बचा संसार में,
जिससे कुछ कह सकूँ
अपना हर्ष, विषाद या फिर अन्तर्भावनाओं को,
कहीं भी मन एकाग्र नहीं हो पाता।
एक पल का अवकाश भी,
तेरी स्मृति चुरा लेती है।
अक्सर सभी नाराज़ रहते हैं मुझसे
इनमे उनका कोई दोष नहीं।
दोष तो सिर्फ मेरा है, मेरी आदतों का
पश्चात;
पश्चाताप करना पड़ता,
माॅफी माँगनी पड़ती, रोना पड़ता।
तब भी,
एक गाँठ-सी बन जाती;
उनके हृदयतल पर।
पर! इक तू है,
कितनी भोली, कितनी शालीन, कितनी सुशील!
कभी तेरा मुझसे कोई शिकायत नहीं।
गुस्सा भी करता तो; कुछ नहीं कहती।
सुन लेती चुपचाप; मूक-बधिर समान।
अधिक होता तो,
रो लेती एकांत, छत के कोने में।
तेरा यही आत्मिक व निर्मल प्रेम ही
मुझे तेरी तरफ खींचता है।
बँधता जाता हूँ, तेरे प्रेम में; सौंदर्य में।
खैर! जो भी हो।
पता है,
कल रात तू मेरे सपनें में आयी थी
मुझे जगाया औ प्यार भरी बातें भी की।
पर! वह सपना, सपना नहीं था
तेरे हृदयस्थ-भाव थे,
जिन्हें लबों पे लाने का तुझे
अब तक साहस न हो पाया था;
और वह एहसास मुझे अब तक है।
वह तेरा कोमल स्पर्श व प्रेमासिक्त ध्वनि
गूँज रही है कानों में,
क्योंकि
आज तक कोई मुझे इतना प्यार नहीं किया।।

प्रवीन "पथिक" - बलिया (उत्तर प्रदेश)

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