मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २२) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(२२)
चंपारण विद्रोह, रहा था जब तक जारी।
गाँधी राँची शहर, पधारे बारी-बारी।
आंदोलन पश्चात, पुनः राँची में आए।
टाना भगतों साथ, विदेशी वसन जलाए।।


आयोग हुई गठन, काँग्रेस दल की भारी।
आम सभाएँ नित्य, रही अतिकारी जारी।
डा०राजेन्द्र प्रसाद, कृष्णवल्लभ जी आए।
पंडित मोतीलाल, मजरूल हक भी छाए।।


बंद हुए तत्काल, अदालत और शिक्षालय।
व्यप्त रहा हड़ताल, चली थी न रेल कतिपय।
इसी बीच साइमन, कमीशन भारत आया।
उन्नति समाज गान, अलग राज्य हेतु गाया।


टाटा औ धनबाद, देवघर गाँधी आए।
शहर डाल्टेनगंज, गमन कर सभा बुलाए।
गए हजारीबाग, मिले हो-मुंडा जन से।
छात्रों से संवाद, किए उल्लासित मन से।।


स्वाधीनता प्रदीप, चहुँ ओर हुई प्रज्वलित।
देशभक्ति के गीत, हुई जन-जन में मुखरित।
तोड़ नमक कानून, प्रांत को किया प्रभावित।
शुभ स्वदेशी जुनून, किया सबको आंदोलित।।


तुम भी दीनानाथ! किए दर्शन थे मंजर।
भू-पुत्रों के साथ, लगाए चक्कर दिनभर।
स्वदेशीय व्यवहार, हमें करना सिखलाओ।
ममता करे गुहार, मिहिर! अथ कथा सुनाओ।।


डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)


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