मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २१) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(२१)
बीती काली रात, गए छुप चाँद-सितारे।
लेकर नवल प्रभात! गगन पे मिहिर पधारे।
बोल पड़े इसबार, स्वयं लब अपना खोले।
स्वाधीनता बयार, देश में ली हिल्लोरें।


बन काला कानून, हुआ था जब से पारित।
झारखण्ड अतिकार, हुआ तत्काल प्रभावित।
थे बारेश्वर राय, विरोधी स्वर लहराए।
रामदीन पांडेय, भड़क कर आगे आए।।


बिल का किए विरोध, गुलाब तिवारी नेता।
भड़क उठी तत्काल, राज्य की तमाम जनता।
बजी थी क्रांति-नाद, मचा क्षेत्रों में हल-चल।
मौलाना आजाद, पधारे राँची उस पल।।


फिर क्या हुआ पतंग? कथा विस्तारित बोलो।
मन में प्रश्न अनंत, राज आगे की खोलो।
इक-इक कर क्रमवार, जिक्र तुम करते जाओ।
ममता करे गुहार, मिहिर! अथ कथा सुनाओ।।


डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)


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