हे भारती हर क्लेश जग - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

पूजन करूँ मैं आरती, नित शारदे माँ भारती।
चढ़ सत्यरथ नित ज्ञानपथ, श्वेतवसना सारथी।। 

हे सर्वदे सरसिज मुखी तिमिरान्ध जीवन दूर कर।
वीणा निनादिनी सन्निधि, सद्ज्ञान पथ उन्मुक्त कर।।

नवनीत कर समधुर सरस रव को बना माँ शारदे।
अज्ञान पथ मदमत्त मन हर आलोक बन माँ तार दे।।

स्वार्थ रत नित छल कपट असत् पथ नर लोक में।
हर पाप जग संताप सब सम्बल करो हर शोक में।।

श्वेताक्षि मृदु शरदेन्दु शीतल सरस्वती वदनाम्बुजे।
नमन करूँ नित कमल पदतल माधवी शुभदे शुभे।।

कलहंस वाहिनि धवल गात्रे चन्द्रमुख जगदम्बिके।
समरस सुधा सुललित चित्त करुणा दया भर शारदे।।

कटुभाव हर समशान्ति मन उन्माद पथ नर दूरकर।
नित कोप रिपु मद मोह तृष्णा घृणा जन मन मुक्तकर।।

चन्दन धवल कोमल हृदय वेदांग कर नित शोभिते।
दे सुमति नर सद्विवेक नित अरुणाभ जीवन ज्ञानदे।।

सरस्वति महामाये देवासुर मनुज त्रिलोक नित पूजिते।
नयना विशाल सरोज सम स्मित वदन नित सुरभिते।।

हे भारती हर क्लेश जग अरि दलन कर द्रोही वतन।  
प्रवहित सतत स्नेहिल सरित् समुदार जन रसधार मन।।

हर तिमिर जन आलोक जग दे सुज्ञान मानव चिन्तना।
संगीत बन सुनीति पथ तू अवलम्ब माँ करूँ वन्दना।।

भव्या मनोहर भारती षोडश कला विद्या चतुर्दश गायिनी।
नृत्य गीत संगीत रीति गुण अलंकार साम नवरस भाविनी।

अज्ञान तम आबद्ध सुत मतिहीन नित दिग्भ्रमित पथ।
माँ ज्ञान दे मेधा विनत सब संताप हर चलूँ आशीष रथ।।

कल्याण कर तिमिरान्ध हर सुख शान्ति जग समृद्ध दे।
निर्मल सबल पावन विनत माँ सुकीर्तिफल वरदान दे।। 

फाल्गुनी मधुमास में ज्ञान आलोक बन जग तार दे।
पूजन करूँ तिथि पञ्चमी नत विनत देवी शारदे।।

नवपल्लवित कुसुमित मुकुल पादप रसाल निकुंज में।
वैदिक रीति सामग्री सकल पूजन आरती रत भक्ति में।।

हे ब्रह्मचारिणि शुभदे सरित संत्रास से जग उद्धार दे।
सुविवेक सत्पथ प्रीति समरथ परहित वतन रत ज्ञानदे।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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