बिखरे हुए अरमानों को प्रेम से जोड़,
आशाओं की फिर से उम्मीद जगा दे।
आओ बिखेरे हम, प्यार की खुशबू,
टूटे हुए दिलों में मरहम लगा दे।
घृणा की बहती रफ्तार को थमाकर,
सब दिलों में प्रेम की धाराएं बहा दे।
आओ बिखेरे हम, प्यार की खुशबू,
इस जहां से नफ़रती दीवारें ढहा दे।
अलगाव की उत्पाद से जो बने अचल,
बुलंदियों के शिखर पर चढ़ हिला दे।
आओ बिखेरे हम, प्यार की खुशबू,
झूठ कपट की बुनियाद के गढ़ गिरा दे।
ना कोई ऊँचा और ना कोई नीचा,
ये ऊँच-नीच का सब चलन छोड़ दे।
आओ बिखेरे हम, प्यार की खुशबू,
जाति-धर्म के ये सब बंधन तोड़ दे।
मन का मन से मिलन हो संभव,
जो रूठ गये, उन्हें फिर से मना दे।
आओ बिखेरे हम, प्यार की खुशबू,
बिछुड़े दिलों में जगह फिर से बना दे।
सुखी-सम्पन्न हो यह मानव जीवन,
अहितकारी बेजान-सी शर्तें मिटा दे।
आओ बिखेरे हम, प्यार की खुशबू,
जमाने से जमीं अज्ञान की परते हटा दे।
हार में भी जीत की दुहाई देकर,
सहारा बनने का यह रिवाज बना दे।
आओ बिखेरे हम, प्यार की खुशबू,
शिक्षित सफल यह समाज बना दे।
काम-क्रोध, लोभ-लालच ठुकराकर,
सुनहरी सोच के संस्कार भर दे।
आओ बिखेरे हम, प्यार की खुशबू,
सुन्न पड़े जीवन में झंकार कर दे।
कानाराम पारीक "कल्याण" - साँचौर, जालोर (राजस्थान)