अवार्ड वापसी - कविता - सौरभ तिवारी

सम्मान वापसी, उचित नहीं
ये राष्ट की आन हैं।
जिसे मिले मानद रतन
कुछ विरले ही इंसान है।।

स्वर विरोध के प्रबल करो
ये नैतिक अधिकार है।
सम्मानों को, यूं ठुकराना
राष्ट्र विमुख हथियार है।

मत भूलो इन सम्मानों ने
तुम्हें राष्ट धरोहर माना है।
है कर्तव्य तुम्हारा पहले
देश का मान बढ़ाना है।।

प्रतिकार करो उस नीति का
जो तुमको नहीं सुहाती हो।
लेकिन मत भूलो माटी को
जो तुमको रत्न बनाती हो।।

बापू की सीख को भूल गए
विरोध करो पर विनय सहित।
नम्र रहो, प्रतिकार भी हो
तिरस्कार हो, तो घृणा रहित।।

भारत माँ के उपहारों का
ऐसा अनादर ठीक नहीं।
ये संस्कारों की भूमि है
ऐसी पुरखों की सीख नहीं।।

अपनी माँ की सौगातों को
कोई बेटा क्या लौटाता है।
है सपूत, वहीं इस जग में
जो माँ का मान बढ़ाता है।।

भारत माँ की आन बचाने
कितने सूली पर झूल गए।
शासन से नाराजी मे
तुम राष्ट प्रेम ही भूल गए।।

चलें अनीति पर सरकारें
तुम उनका प्रतिकार करो।
जो सम्मानों दिए है तुमको
उनका न तिरस्कार करो।।

ये विरोध की दुर्बलता है
अनीति का प्रतिकार नहीं।
जो राष्ट्र धरोहर ठुकराए
उन्हें रत्नों का अधिकार नहीं।।

मात्र प्रतीक और चिन्ह नहीं
यह भारत का सम्मान हैं।
इनको वापस लौटाने का
मतलब राष्ट्र-अपमान है।।

सौरभ तिवारी - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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