संदेश
वक़्त ख़ूब लगता हैं - कविता - कर्मवीर सिरोवा
नये-नये कोई भी हो सवाल, रटने में वक़्त ख़ूब लगता हैं। अभी-अभी तो शुरू हुई हैं कक्षा अपनी, साथियों संग गप-शप करने में वक़्त ख़ूब लगता हैं…
एहसास - कविता - श्रवण निर्वाण
यार! मुझे तो दूर तक जाना था तेरे साथ मेरा अन्तर्मन टूट गया, क्यों छुटा साथ। शेष रह गई बहुत सी मेरे मन की बातें कई बार कटती है, जागते ह…
मधुरभाष जीवन नशा - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
नशा सदा नव सीख का, नशा सदा परमार्थ। मधुर भाष जीवन नशा, नशा कर्म धर्मार्थ।।१।। नशा नार्य सम्मान हो, नशा भक्ति नित देश। समरसता मन नश…
काट लाये खेतों से सपनों को हम - कविता - सतीश श्रीवास्तव
जीवन बीत रहा उलझा सा उलझन हुई न कम, काट लाये खेतों से सपनों को हम। यही खेत तो जीवन रेखा खेतों में ही जीना, नहीं किसी को पता खेत में कि…
मोहब्बत की लौ - ग़ज़ल - सुषमा दीक्षित शुक्ला
मोहब्बत की लौ थी जलाई गई। जो दीवानगी तक निभायी गई। वफ़ा ए मोहब्बत में हद से गुजरना। इबादत के माफिक अदायी गयी। कभी रात दिन तेरी राहों…
अतुकांत कविता - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
कवि तुम्हारी अतुकांत गहरे बैठ वाली कठिन शब्दोंं में जड़ी कविता कौन सुनेगा? क्योंकि लोक गीत जो जीजा साली देवर भाभी और उनको सम्बोधित करने…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग ७) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
हे प्रियवर मार्तंड! किरण पट अपना खोलो। तत्काल झारखण्ड, राज्य की बातें बोलो। मुगल वंश का दंश, किन्हें कर गया भिखारी? कर देना उसकाल, पड़ा…
युद्ध अभी शेष है (भाग ५) - कहानी - मोहन चंद वर्मा
अगले दिन सुबह सम्राट अकेल ही घोडे पर सवार होकर गुरू के पास गए। गुरू शिष्यों को जीवन और सत्य का पाठ पढा रहा था। गुरू एक बरगद का बीज लेक…
ग़रीब किसान - कविता - गणपत लाल उदय
हम गाँवो के ग़रीब किसान करते - रहते खेतों पर काम। फिर भी मिलता न पूरा दाम लगे रहते हम सुबह से शाम।। पत्नी बच्चे और ये घर वाले काम स…
विलक्षण - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
प्रकृति विलक्षण साधु की, जीए जो परमार्थ। प्रेम साँच नित कर्मपथ, तजे स्वार्थ धर्मार्थ।।१।। शील त्याग गुण सम्पदा, राष्ट्र भक्ति उद्दाम।…
वृक्ष संरक्षण - कविता - राम प्रसाद आर्य
वृक्ष से मिलती हवा है साँस लेने के लिए हमको सदा। मधुर रसमय फल व शीतल छाँव, थक जायें यदा।। वृक्ष देते जल हमें, ईंधन जलाऊ, इमारत के का…
किसान की ललकार - लेख - श्याम "राज"
तुम्हारी ज़िंदगी की डोर किसी और के हाथों में नहीं बल्कि मेरे ही हाथों में है। मैं कोई और नहीं भूमिपुत्र किसान हूँ जिसकी मेहनत पर तुम कद…
हे किसान - कविता - तेज देवांगन
गड़ गड़ की गड़गड़ाहट पे चम चम की चमचमाहट पे पसीने की तर तरहात पे दो टूक की आहत पे कर जाते हर काम हे कृषक तुम हो महान। अथ अथाह तेरी चल …
खेत की रोटी - कविता - विकाश बैनीवाल
होती है कठिन खेत की रोटी, सिर्फ किसानों से जुड़ी कसौटी। ना डकैती है, ना ही रिश्वतखोरी, ना ही चोरी, ना ही जमाखोरी। ना ही इसकी कमाई ह…
इत्तेफाक - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
ये महज इत्तेफाक नहीं हो सकता गाँवो से शहरों की ओर पलायन बढ़ता ही जा रहा है, जन जन अपनी ही मिट्टी से कटता जा रहा है। गाँवों की सभ्यता क…
एक स्वप्न - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
एक स्वप्न आँखों में पालो, पैरों में कांटे भी सजा लो, मिल जाएगी मंजिल एक दिन, अपने मन को जरा संभालो, अर्जुन-सा निशाना साधो, एकलव्य सी भ…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग ६) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(६) लुक-छुप कर अफगान, पधारे थे कब वन में? लोग हुए बेचैन, सघन वन के आंगन में। था किस राजा पास, श्वेत बलशाली हाथी? कौन-कौन थे खास, बने आ…
युद्ध अभी शेष है (भाग ४) - कहानी - मोहन चंद वर्मा
सम्राट रानी के साथ कक्ष में बैठा था। ’’क्या इन नियमों का पालन करने से महामारी चली जाएगी?’’ ’’अगर नियम का पालन ठीक प्रकार से हो तो संसा…
विरान ज़िन्दगी - कविता - प्रवीन "पथिक"
अब तक तो दुनिया हसीन थी, पल भर में क्या हो गया। जिसको चाहा था वर्षो से, दो पल में मुझसे खो गया। जिसको कितना प्यार दिया था, जिसपर…
साथी हाथ बढ़ाना - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
चला राष्ट्र पथ निर्माणक बन, नयी प्रगति नित शुभ शान्ति चमन, आगत पथप्रदर्शक बन पाऊँ, मानक साथी हाथ बढ़ाना। कठिन…
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