मोहब्बत की लौ - ग़ज़ल - सुषमा दीक्षित शुक्ला

मोहब्बत की लौ थी जलाई गई। 
जो  दीवानगी तक निभायी  गई।

वफ़ा ए मोहब्बत में हद से गुजरना।
इबादत के माफिक अदायी गयी।

कभी रात दिन तेरी राहों का तकना।
न यादें कभी वो  भुलाई गईं।

दरख्तों के साए में छुप छुप के मिलना।
वो  रूहों में रूहें समायी  गईं।

मोहब्बत भरे उन तुम्हारे खतों से।
थी चुप चुप के रातें बिताई गईं।

कभी बाग में मेरे गेसू सजाना ।
थी रस्में मोहब्बत जताई गयी।

बड़ी होती मुश्किल ये राहे मोहब्बत।
मगर सुष ये दिल से सजाई गई।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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