विकाश बैनीवाल - भादरा, हनुमानगढ़ (राजस्थान)
खेत की रोटी - कविता - विकाश बैनीवाल
मंगलवार, दिसंबर 01, 2020
होती है कठिन खेत की रोटी,
सिर्फ किसानों से जुड़ी कसौटी।
ना डकैती है, ना ही रिश्वतखोरी,
ना ही चोरी, ना ही जमाखोरी।
ना ही इसकी कमाई है खोटी,
होती है असल खेत की रोटी।
मिट्टी का कण-कण पसीना नहाया,
तेज दुपहरी मे खून भी बहाया।
कैसे कहे सोच है उसकी छोटी,
होती है असल खेत की रोटी।
मेहनत करता है वो दिन-रात,
भगवान से मांगता है बरसात।
धरा पर आशाए न तकता चोटी,
होती है असल खेत की रोटी।
ठग-ठाकुरों ने नोच-नोच खाया,
सत्ताधारीयों ने शिकार बनाया।
व्यापार की मांग हल पर लोटी,
होती है असल खेत की रोटी।
खेत का जवान खेती का प्रधान,
राष्ट्र के रीढ़ की हड्डी है किसान।
हार्दिक प्रणाम नमन कोटि-कोटि,
होती है बड़ी कठिन खेत की रोटी।
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