विरान ज़िन्दगी - कविता - प्रवीन "पथिक"

अब तक तो दुनिया हसीन थी,
पल भर  में  क्या  हो गया।
जिसको  चाहा  था वर्षो से,
दो पल में  मुझसे खो गया।
जिसको कितना प्यार दिया था,
जिसपर  जीवन  वार दिया था।
और क्या कहूँ उसके तारीफ़ में,
जिसको सारा संसार दिया था।
हर-दिन  उठता  इसी आस में,
होगी मुलाक़ात बस इसी चाह में।
इसीलिए  तो उससे  दीदार को,
बिछ जाती आँखें उसके राह में।
हर पल उसकी यादों में मैं,
खोया-खोया सा रहता था।
आँखों में उसके सपने जब,
उनमें  सोया-सा  रहता है।
क्या मालूम था, उसके चाहत को?
कि, वो  यूँ  ही  बदल  जाएगी।
महकाया था, जो प्रेमविपिन को,
पल-भर में ही उजड़ जाएगी!
पता  नहीं  क्या खता हुई,
मुझसे यूँ क्यों बिछड़ गई?
जिसको तो दिल में रखा था,
मिलकर  यूँ  क्यों ज़ुदा हुई।
क्या कहूँ? न मौका ही मिला,
ना उसके दिलों को जान सका।
सोया  ही  रहा प्यारे सपनों में,
ना  ही  उसको  पहचान सका।
वही टीश अब दिल में मेरे
चुभती और तड़पाती  है
ऑंखों में बरसात लिए वो,
बस! यही कहती जाती है
मत गुजरना इन कंटक राहों से,
ना ही किसी से प्यार करना।
मत उलझना उन कंज-नयनों में,
ना ही ज़िन्दगी दुश्वार करना।

प्रवीन "पथिक" - बलिया (उत्तर प्रदेश)

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