अतुकांत कविता - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

कवि तुम्हारी
अतुकांत
गहरे बैठ वाली
कठिन शब्दोंं में
जड़ी कविता
कौन सुनेगा?
क्योंकि
लोक गीत जो
जीजा साली
देवर भाभी
और उनको
सम्बोधित
करने वाली
वाह-वाह से
ओत प्रोत
फूहड़ अश्लील
ठुमके थिड़कने वाले
कवियों को सुनने वाले का
बहुमत,
एक बड़े वट वृक्ष
की छाया में
तल्लीन है।
कवि अतुकांत
कविता लिखने
से पहले
उस फूहड़
वट वृक्ष को काट डालो
और अमराई की
छाया में
शैलाव खड़ा
कर दो
फिर सुनाओ अपनी कविता।

रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

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