हम गाँवो के ग़रीब किसान
करते - रहते खेतों पर काम।
फिर भी मिलता न पूरा दाम
लगे रहते हम सुबह से शाम।।
पत्नी बच्चे और ये घर वाले
काम सभी यह करते है सारे।
मिलता हमें रोटी और प्याज
मिलकर खाते हम सब साथ।।
कडी धूप बारिश और हवाऐ
कहर सभी ये हम पर ढ़हाऐ।
बहुत बार रहे सूखा अकाल
धरती माँ हमें करती कगांल।।
मूंग मोठ चना गेहूं एवं चावल
खेतों में यह किसान सब बोऐ।
जिसको खाकर आज देश में
मानव अपना जीवन चलाऐ।।
थोड़ा हम रखते अपने पास
बाकी सब बेच देते हैं सरकार।
उसमें से वह टैक्स काटकर
हम सब को देती है कलदार।।
जेसे आऐ थे हम धरती पर
ऐसे ही एक दिन चले जाना है।
आज तक किसी किसान को
जमीनदार बनते नहीं पाया है।।
गणपत लाल उदय - अजमेर (राजस्थान)