हे किसान - कविता - तेज देवांगन

गड़ गड़ की गड़गड़ाहट पे
चम चम की चमचमाहट पे
पसीने की तर तरहात पे
दो टूक की आहत पे
कर जाते हर काम
हे कृषक तुम हो महान।
अथ अथाह तेरी चल पीड़ा
माते रहे मृद मदीरा
बंजर उपवन तुम बनाते
धरा हरित तुम कर जाते
करे कैसे तुम्हारी गुणगान
हे कृषक तुम हो महान।

तेज देवांगन - महासमुन्द (छत्तीसगढ़)

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