डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग ६) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
सोमवार, नवंबर 30, 2020
(६)
लुक-छुप कर अफगान, पधारे थे कब वन में?
लोग हुए बेचैन, सघन वन के आंगन में।
था किस राजा पास, श्वेत बलशाली हाथी?
कौन-कौन थे खास, बने आपस में साथी?
कोकरह सिंहभूम, पलामू गढ़ था कैसा?
खरगडीह पंचेत, विकास किया था कैसा?
रामगढ़ राजपाठ, चला कैसे करता था?
उन्नति खातिर बाट, कौन जोहा करता था?
था हीरा का खान, कोकरह में बहुचर्चित।
पहुँची कानों कान, बात मुगलों तक किंचित।
मन में लेकर चाह, मुगल कोकरह पधारे।
भीषण हुए तबाह, वनांचल के जन सारे।।
मुगल वंश जाँबाज, ध्वजा गढ़ में फहराए।
कर के अदा नमाज, खुदा का ख़ैर मनाए।
तुमने किया सलाम, हमें करना सिखलाओ।
ममता करे गुहार, मिहिर! अथ कथा सुनाओ।।
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