युद्ध अभी शेष है (भाग ५) - कहानी - मोहन चंद वर्मा

अगले दिन सुबह सम्राट अकेल ही घोडे पर सवार होकर गुरू के पास गए। गुरू शिष्यों को जीवन और सत्य का पाठ पढा रहा था।
गुरू एक बरगद का बीज लेकर शिष्य को समझाते है।
’’जीवन का शाब्दिक अर्थ = जन्म और मृत्यु।
जहाँ जन्म और मृत्यु की संरचना बनी रहे जीवन कहलाता है।
ये मात्र एक बीज है लेकिन जिस वृक्ष का ये बीज है वह बहुत बडा है। फिर ये बीज इतना छोटा क्यूँ जानते हो ऐसा क्यूँ है? ये बीज स्थिर है। शून्य की भाँति लेकिन जब इसे जमीन में दबा दिया जाए तो फिर क्या होगा जानते हो।’’
’’फिर इसमें से भी एक पौधा निकल कर धीरे-धीरे वृक्ष का रूप ले लेगा।’’
’’क्योंकि शून्य के बाद इसमें मैं की ऊर्जा का निर्माण होगा। ऊर्जा फिर पौधे के रूप में बाहर निकल कर धीरे-धीरे एक विशाल वृक्ष का निर्माण कर लेगी। यहीं जीवन है। जीवन में जब किसी ज्ञान का बोध होता है सत्य कहलाता है। जैसे मैं कहूँ ये बीच बरगद का नहीं पीपल का है तो क्या आप मानेगे।’’
’’नहीं...।’’
’’क्योंकी आप सभी को ज्ञात है। लेकिन जिसे ज्ञात ना होतो वह तो इसे पीपल का ही बीज समझेगा। जब पौधा बरगद के रूप में समाने आएगा तब उसे बदगद और पीपल के सत्य का बोध होगा। जब सत्य और असत्य दोनों हो तभी इनकी परिभाषा बनकर सामने आती है  तभी सत्य और असत्य का बोध कर पाते है।’’
’’किसी के मन में कोई प्रशन है?’’
’’मेरे मन में है गुरूजी?’’

सभी ने देखा तो सम्राट खडे थे सम्राट ने गुरू को प्रणाम किया।
’’सम्राट आप।’’
’’गुरूजी मैं यहाँ सम्राट बनकर नहीं एक शिष्य की भाँति आया है।’’
’’क्या प्रश्न है?’’
’’जहां जन्म और मृत्यु की संरचना बनी रहे तो जीवन अगर मृत्यु का तांडव हो तो जीवन कैसे कहला सकता है?’’
’’जन्म के बाद मृत्यु आती है। मृत्यु के बाद जन्म आता है। अर्थात् जन्म है तो मृत्यु भी है और मृत्यु है तो जन्म भी है। फिर मृत्यु का तांडव ही क्यूँ ना हो जन्म का अंत नहीं हो सकता। ना ही मृत्यु का। जीवन की वर्षा फिर भी होती रहेगी। इसे कोई नहीं बदल सकता फिर चाहे प्रलय ही क्यूँ ना आ जाए। जिस प्रकार आज रोग प्रलय के आने के कारण फिर भी जीवन का समय चक्र चल रहा है ये कभी नहीं रूकने वाला ये जीवन अनंत काल तक चलता रहेगा।’’

महारानी कक्ष मैं थी। सेविका ने अंदर आकर कहा, ’महारानी की जय हो सम्राट महल में आ चुके है। फिर द्वारापाल ने सम्राट के अंदर आने की सुचना दी। जब सम्राट अंदर आया तो सेविका चली गई।
’’सम्राट आप कहां गए थे?’’
’’प्रलय को लेकर मेरे मन में प्रशनों का जाल बुना हुआ था। और उन्हीं प्रश्नों का उत्तर पाने के लिए मैं गुरूजी के पास गया।’’
’’उन सभी प्रश्नों का उत्तर मिला।’’
’’मिला पर एक प्रश्न से सारे प्रश्नों के उत्तर मिल गए।’’
’’क्या था वो एक प्रश्न।’’

सभा कक्ष में मंत्री, सेनापति, आचार्य व अन्य राजा उपस्थित थे। सम्राट रानी के साथ बैठा था। सम्राट सभी से कहता है, ’आप सभी को पता है धरती पर रोग प्रलय पनप रहा है ये रोग एक ना एक दिन जड सहित समाप्त हो जाएगा। लेकिन धरती पर विनाश कारी प्रलय आ रही है। जिसे रोका नहीं जा सकता। और ना ही बचा जा सकता है।’
’’सम्राट इस विनाश कारी प्रलय से तो धरती के सारे जीव मर जाएगें’’
पहले राजा ने बोला।

’’फिर तो सम्राट जीवन का अंत हो जाएगा’’
पाचवे राजा ने बोला।

’’इस प्रलय के बाद क्या धरती पर फिर कभी जीवन नहीं होगा’’
ग्यारवे राजा ने बोला।

’’ऐसे ही अनगिनत प्रशनों का जाल मेरे मन मैं थे। जब मैं गुरूजी के पास गया तो मात्र एक प्रश्न से सारे प्रशनो के उत्तर मिल गए’’
सम्राट ने कहा।

’’क्या था वो एक प्रश्न’
आचार्य ने पूछा।

(’’जहाँ जन्म और मृत्यु की संरचना बनी रहे तो जीवन अगर मृत्यु का तांडव हो तो जीवन कैसे कहला सकता है?’’
’’जन्म के बाद मृत्यु आती है। मृत्यु के बाद जन्म आता है। अर्थात् जन्म है तो मृत्यु भी है और मृत्यु है तो जन्म भी है। फिर  मृत्यु का तांडव ही क्यूँ ना हो जन्म का अंत नहीं हो सकता। ना ही मृत्यु का। जीवन की वर्षा फिर भी होती रहेगी। इसे कोई नहीं बदल सकता फिर चाहे प्रलय ही क्यूं ना आ जाए। जिस प्रकार आज रोग प्रलय के आने के कारण फिर भी जीवन का समय चक्र चल रहा है ये कभी नहीं रूकने वाला ये जीवन अनंत काल तक चलता रहेगा।’’)
 
’’अर्थाथ् प्रलय आने के बाद भी धरती के किसी ना किसी भाग पर प्राणी के अंश का जन्म होगा’’
आचार्य ने कहा।

’’जिस-जिस देश के सम्राट और राजा यहां उपस्थित है उन सभी से अनुरोध है बाहरी प्रलय को गुप्त रखे। और अन्य राजाओं को भी यही सला दे’’
सम्राट ने कहा।

’’प्रलय की बात प्रजा से गुप्त क्यूं सम्राट....’’
गुनीसवे सम्राट ने पूछा?

’’महामारी के इस प्रकोप में भी प्रजा ने जीवन जीने की आसा नहीं छोडी जो महामरी के शिकार थे। वे भी स्वस्थ होकर अपना जीवन निर्वाह कर रहे है। प्रलय की बात सुनकर जीवन जीने की आसा ना छोडे इसी कारण प्रलय की बात प्रजा से गुप्त रखनी अनिवार्य है’’
सम्राट ने कहा।

’’अगर किसी कारण वस प्रजा को प्रलय के बारे में पता चल गया तो तब क्या होगा सम्राट’’
’’जो भी हो अच्छा ही हो ईश्वर से यही दुवा करे’’
सम्राट ने कहा।

’’मैं आपकी बात से सहमत हूँ सम्राट’’
बीसवे राजा ने कहा।

फिर सभी राजा और सम्राट की बात से सहम हुए। फिर सम्राट ने मंत्री से कहा, ’मंत्री जी आज प्रजा को सुचना दे दिजिए की कल सुबह माई की शव यात्रा निकाली जाएगी। नियम के अनुसार भीड़ ना हो घर के द्वार से ही सभी माई के अंतिम दर्शन कर सकते है।’
 
रोग प्रलय
प्रलय आई।
रोग प्रलय आई।
 
सब रोगो से महान बनने आया।
अपनी दहशत फैलाने आया।
 
इधर-उधर घुम रहा है रोग
पर किसी को मृत्यु का भय नहीं।    
 
गंदगी ना फैलाए। सफाई रखे।
खासते और छीकते समय मुहं पर कपडा रखे।
एक दूसरे से दूरी बनाकर रहे।
भीड जमा ना हो।
कुछ भी छूआ हो तो हाथ धोएँ कुछ भी खाने से पहले खाने वाली चीज को और हाथ को धोएँ।
 
ये ऊपदेश दे गया कोई पर किसी को कुछ नहीं समझ आया।
लापरवाही होती रही रोग अपना आतंक फैलाता गया।
 
वो घुम रहा है इधर-उधर हर किसी की तलाश में
वो आएगा रूप बदलकर दरवाजा खटखटाएगा पर तुम दरवाजा बंद रखना।
क्योंकि मौत खडी है तेरे द्वार पर।
नहीं सुना किसी ने किसी की बात ना बरती सावधानी दरवाजा खुल गया। लोग सड़कों पर आ गए।
उसने अपना कहर बरसाया ले लिया सभी को अपनी बाहो में।
घरो से लोगों की जनसख्याँ कम होती रही।
मरीजो और लाशो की जनसख्याँ बढ़ती गईं।
देखते ही देखते मानव जाति ही नहीं पशु-पक्षी का अंत होता चला गया।
 
आई, प्रलय आई।
रोग प्रलय आई।

फिर अगले दिन सुबह माई की शवयात्रा निकाली गई। सभी ने दूर से ही दर्शन किए और फूलो की वर्षा की गई। श्मशान में शव को जमीन में दफना दिया गया। माई की प्रतिमा को उस पहाड की धरातल पर स्थापित कर दी गई।

जारी... पढें अगले अंक में

मोहन चंद वर्मा - जयपुर राजस्थान

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