सम्राट रानी के साथ कक्ष में बैठा था।
’’क्या इन नियमों का पालन करने से महामारी चली जाएगी?’’
’’अगर नियम का पालन ठीक प्रकार से हो तो संसार की हर चीज बदली जा सकती है।’’
’’लेकिन संसार की चार चीजे ऐसी है जिसे कभी बदला नहीं जा सकता।’’
’’और वो क्या है?’’
’’शून्य ओर मैं ,जन्म और मृत्यु।’’
’’ठीक कहा आपने।’’
तभी बाहर कक्ष से सेविका की आवाज आई, ’सम्राट की जय हो।’
रानी: अंदर आओं सेविका।
सम्राट: कहो क्या बात है?
सेविका: सैनापति जी ने कहा है आचार्य जी आ चुके है।
उधर गुप्त कक्ष में बैठा आचार्य द्वारपाल सम्राट के आने की सुचना देता है। सम्राट के अंदर आने पर, सम्राट आचार्य को प्रणाम करते है तो आचार्य खडे होकर सम्राट को प्रणाम करता है इस प्रकार दोनों एक दूसरे को प्रणाम करते है।
सम्राट: ऐसी क्या बात थी आचार्यजी जो पत्र में ना लिख कर गुप्त कक्ष में कहना चाहते है।
आचार्य: मैं जो बात बताने आया हूँ वो बात केवल दुनिया के सभी खगोलशास्त्री जानते है। देश-विदेश के सभी खगोलशास्त्री इस निर्णय पर है की अब धरती पर प्रलय निश्चित है।
सम्राट: कहीं इस महामारी को तो लेकर नहीं।
आचार्य: ये रोग प्रलय है जो मानव की लापरवाही से ये रोग फैला है परन्तु मैं जिस प्रलय की बात कर रहा हूँ वो ब्रह्मांड में हो रही हलचल के कारण आने वाली है।
मंत्री: आपने ही कहा था। ब्रह्मांड में हलचल तो होती रहती है। इसमे चिंता की कोई बात नहीं फिर आज चिंतित होने की क्या जरूरत है।
आचार्य: लेकिन आज जरूरत है। और ये बडा विनाश कारी है।
सम्राट: ऐसा क्या विनाश होगा धरती पर?
आचार्य: प्रलय आएगी। जिसे प्राकृति प्रलय कहते है। प्राकृति प्रलय में दो प्रकार की प्रलय है एक है बाहर प्रलय दूसरी है आन्तरिक प्रलय। बाहरी प्रलय आएगी तो आन्तरिक प्रलय अनछुई नहीं रहेगी।
सम्राट: कौनसी प्रलय आने वाली है।
आचार्य: बाहरी प्रलय।
सेनापति: अर्थाथ्।
आचार्य: पिंड के टकराव की प्रलय होगी
सम्राट: तो क्या पिंड धरती ये टकराने वाला है?
आचार्य: जी सम्राट सभी गणित शास्त्रीयो की गणना के आधार पर ही इस निर्णय पर पहुँचे है की वो पिंड सौवे दिन को धरती से टक्करा जाएगा। सौ दिन पूरे होने से पहले एक दिन उसे धरती के चक्कर लगाते हुए देखा जा सकता है।
मंत्री: क्या ये वहीं पिंड है जो आज से कुछ सालो पहले धरती से गुजर कर चला गया था।
आचार्य: पहले ऐसा ही लगा की ये वहीं पिंड है लेकिन ज्ञात करने पर पता चला की ये पिंड वह नहीं है ये कोई दूसरा पिंड है पहले वाले पिंड की तुलना में काफी विशाल है अगर वहीं पिंड धरती पर गिरता तो प्रलय जैसे स्थिति उत्पन्न नहीं होती।
सम्राट: आज माई का कथन पूरा स्पष्ट समझ आ रहा है। युद्ध कभी समाप्त नहीं होता प्रलय अभी शेष है।
सेनापति: रोग प्रलय से तो बचा जा सकता है। लेकिन इस प्राकृति प्रलय से कैसे बचे।
सम्राट: माई ही है जो इसका उपाय बता सकती है। सैनापति माई के पास चलने की तैयारी करो।
सेनापति: जी सम्राट।
फिर सम्राट और सेनापति दोनों घोडे पर सवार होकर चल दिए पहाड से नीचे एक वृक्ष था। दोनों घोडो को वहीं छोडकर पहाड के शिखर पर गए। पहाड की धरातल पर बनी एक कुटिया के द्वार तक पहुँचकर सम्राट माई बोलकर कुठिया का दरवाजा खोला तो माई अंदर ध्यान की अवस्था में बैठी थी। दोनो हाथ जोडे खडे थे। सम्राट ने सैपापति से कहा, ’हम जब भी माई से मिलने आते थे। तो माई तुरन्त ही आँखे खोल लेती थी। लेकिन इस बार माई ने ना तो हमारे आने पर आँखें खोली ना ही हमारी आवाज सुनकर कुछ बोली।’
सेनापति: सम्राट मुझे ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे माई हमारे समाने है ही नहीं केवल उनका शरीर है।
सम्राट ने जैसे ही माई के हाथ लगाया तो माई निर्जीव की भाँति गिर गई। माई को देखकर सेनापति ने कहा, ’माई तो मर चुकी है सम्राट।’
’’ऐसे कष्ट समय में छोडकर चली गई।’’
’’शायद यही ईश्वर की इच्छा है दुनिया का अंत समय आ चुका है।’’
’’इतनी बडी धरती पर कोई तो ऐसा स्थान होगा जहां उस पिंड का प्रभाव ना पडे और हम जीवन के कुछ अंश को बचा सके।
’’शायद धरती पर ऐसा कोई स्थान नहीं है। अगर होता तो शायद माई हमें इसका उत्तर देकर ही इस संसार से विधा लेती।’’
’’माई के शव को एक दिन के लिए सुरक्षित रखने की व्यवस्था करे और प्रजा में ऐलान कर दिजिए माई अब इस संसार में नहीं रही आपके अंतिम दर्शन के बाद ही मृतक संस्कार किया जाएगा।’’
ये सुनकर प्रजा अत्यंत दुखी हुई। उस दिन किसी के घर में चूल्हा नहीं जला सम्राट पत्नी संग महल से अपनी नगरी को देख रहा था। अमावश्या की रात थी। सभी के घरो से एक-एक दीपक जलता नजर आ रहा था।
’’अमावस्या के दिन प्रजा इस नगरी को दीपक के प्रकाश से जगमा देती थी वहीं आज एक ही दीपक जलाकर माई का शोक मना रही है।’’
’’आज प्रजा भूखी है किसी के घर में चूल्हा नहीं जला। तो मैनें महल के रसोइयां को भी भोजन बनाने से मना कर दिया।’’
’’दुःख का ये पल तो गुजर जाएगा। लेकिन जो पल आने वाला है उसका क्या?’’
’’एक दिन ये रोग प्रलय भी समाप्त हो जाएगा फिर सब पहले जैसा हो जाएगा।’’
’’नहीं होगा अब अंत समय आ चुका है।’’
’’अंत समय आ चुका है। किसका?’’
’’इस धरती का और धरती के इन प्राणियों का।’’
’’इस रोग प्रलय के बाद कोई दूसरी प्रलय आने वाली है।’’
’’जी कोई पींड है जो धरती की और आ रहा है।’’
’’कितने दिन है?’’
’’99 दिन उसके अगले दिन वो पिंड धरती पर आ गिरेगा।’’
’’आपने ये बात प्रजा में एलान क्यूँ नहीं करवाई?’’
’’प्रजा अपना जीवन जिस आसा से जी रही है उसी सुख और दुःख की बहती नदी की तरह जीती रहे धरती के अंत समय के बारे में जानकर वह रूके नहीं। इसी कारण अभी तक ये बात प्रजा से गुप्त रखी है।’’
जारी... पढें अगले अंक में
मोहन चंद वर्मा - जयपुर राजस्थान