एहसास - कविता - श्रवण निर्वाण

यार! मुझे तो दूर तक जाना था तेरे साथ
मेरा अन्तर्मन टूट गया, क्यों छुटा साथ।
शेष रह गई बहुत सी मेरे मन की बातें
कई बार कटती है, जागते हुए मेरी रातें।।

आज मेरी काया का रोम रोम है ख़ामोश
मैं कुछ कर पाता तो होता नहीं अफ़सोस।
समय के कुचक्र को मैं समझ नहीं पाया 
मेरा कोई भी प्रयास सफल नहीं हो पाया।।

आ रहे हैं याद अब दिन जो साथ बिताये
कम नहीं कर पाया कष्ट जो तुम पर आये।
बेशक! ये दुनियाँ तो तुम्हें भूल ही जायेगी 
पर मेरी आँखें वो तस्वीर भूल नहीं पायेगी।।

आये थे तो चलते तुम मीलों तक साथ मेरे
चले गये दूर, क्यों नहीं रोक पाये हाथ मेरे।
जीवन की यह दास्तां, मैं समझ नहीं पाया
कैसे बताऊँ तुम्हें, इस समय ने कैसे सताया।।

शेष है, मेरे जीवन की ये साँसें अभी भी 
यादें मिट नहीं पाएगी, मेरे चित से कभी भी।
यार! यहाँ ही आना मेरे ही इर्दगिर्द फिर से
मेरे अन्तःकरण को वही एहसास हो फिर से।।

श्रवण निर्वाण - भादरा, हनुमानगढ़ (राजस्थान)

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