संदेश
जीवन यही है - कविता - सुनील कुमार महला
जब वो ज़िंदा थी, तो घर आँगन महकता था उसकी बातों से बहता था झरना घुलता था शहद आबोहवा में अब उसका सिंहासन छिन गया है दूर जा बैठी है कहीं…
फ़र्क़ - कविता - डॉ॰ अबू होरैरा
मायने रखता है- उलझे धागे को सुलझाने वाले का जीवन, कितना सुलझा है? मायने रखता है– उसके जीवन का अनवरत श्रम, किसके तन पर दिखता है? मायने …
जीवन एक संघर्ष है - कविता - उमेन्द्र निराला
जीवन एक संघर्ष है और हम पथिक है उसके, राहें सरल नहीं है बाधाएँ हर पग है तो इससे डरना क्या? मुझे गिराने की चाहत में गिर रहें हैं ख़ुद, म…
जीवन पथ पर - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
खिली अरुणिमा सुप्रभात लोक, बढ़ चलो मनुज जीवन पथ पर। वर्तमान के पौरुष काग़ज़, लिख दे भविष्य नव स्वर्णाक्षर। चहुँ दिशा दशा सतरंग किरण,…
जीवन संगीत है - गीत - जयप्रकाश 'जय बाबू'
जीवन संगीत है गुनगुनाना तुम, बीत रहा हर पल मुस्कुराना तुम। लेकर फूलों से ख़ुशबू अपना तन मन महकाना, लेकर पवन से ताज़गी हरदम खिल-खिल …
कालजयी निरंतरता - कविता - अनिल कुमार केसरी
ज़िंदगी बड़ी तेज़ दौड़ती है; निरंतर गतिमान वक़्त की रफ़्तार से भागती रहती है। बदलाव ज़िंदगी का अटूट हिस्सा है; और बदलते रहना ही ज़िंदगी …
अंतिम सच - कविता - विक्रांत कुमार
अंतिम सच कुछ नहीं होता है ढूँढ़ते रहिए जीवन की संगीन परिकल्पनाओं में अपने सुख के दिन की व्याख्या ज़रूरत की तमाम चीज़ों पर निश्चिताओं का स…
हर पड़ाव बदला रंगशाला में - कविता - आशीष कुमार
ज़िम्मेदारियाँ बख़ूबी निभाई, यहाँ तरह-तरह की शाला में। एक उम्र में कई पड़ाव देखे, हर पड़ाव बदला रंगशाला में। जब तक थोड़ा नटखटपन जागा, हम…
दुःख एक सोच - कविता - युगलकिशोर तिवारी
मैं दुःख हूँ पीड़ा, चिन्ता, कष्ट न जाने मेरे कितने रूप हूँ, कभी मन से, कभी तन से, कभी धन से स्वरूप हूँ। ये तुम्हारी सोच है कि मैं कुरु…
जीवन का स्वर्णिम अध्याय - कविता - इमरान खान
ये जीवन का स्वर्णिम अध्याय है! कि दीवार के एक कोने से दूसरे कोने को मापने की कोई गणितीय विधि नहीं है! आकाशगंगा से आती हुई रोशनी, और जग…
जीवन पल दो पल - कविता - विजय कुमार सिन्हा
ज़िंदगी में हर पल लिखा जाता है एक नया तराना, कभी सूरज की तपती धूप कभी चाँदनी की शीतलता। बीत रहा ज़िंदगी का हर पल आश में, विश्वास में,…
ज़िंदगी के रंगमंच पर हर किरदार को निभा जाएँगे - ग़ज़ल - दिलीप वर्मा 'मीर'
ज़िंदगी के रंगमंच पर हर किरदार को निभा जाएँगे, ये दोस्त देख हम कठपुतली है हर दर्द छिपा जाएँगे। नचाती हैं दुनिया मुझे अपनी ऊँगलीयों के इ…
स्थिरता में जीवन - कविता - ऋचा गुप्ता
खुले आकाश के नीचे इक्ट्ठा हुआ जल बादलों का प्रतिबिंब जैसे ज़मीं से झाँकता महल चारों ओर हरियाली दूब और चहल पहल आँखें और तरंगों के जादू स…
प्यास - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
ज़िंदगी के रास्ते पर चलते हुए अचानक एक दिन प्रतिरोध आता है विपतियों का पहाड़ टूट पड़ता है ऐसे समय में यह निश्चय कर पाना कि हमारा जीवन वि…
प्रकृति और अँधेरा - कविता - डॉ॰ आलोक चांटिया
मानते क्यों नहीं इस दुनिया में आने के लिए हर बीज ने एक अँधेरा गर्भ में जिया है पृथ्वी को तोड़कर या गर्भ की असीम प्रसव पीड़ा के बाद …
पौधे सा जीवन - कविता - डॉ॰ आलोक चांटिया
हरियाली की चाहत लेकर, पौधा जो दुनिया में आता है, मिलती उसको तपन धूप की, कभी बिन पानी के रह जाता है। दुनिया को सुख देने की चाहत में, ज…
जीवन का अधूरापन - कविता - राकेश कुशवाहा राही
जीवन का अधूरापन भर न सका, स्वप्न का टूट जाना मैं सह न सका। ज़िन्दगानी दरिया के समानांतर है, इसीलिए जीवन भी रुक न सका। जग में कुछ सुन्दर…
गुज़रते मेरे पड़ाव - कविता - डॉ॰ रवि भूषण सिन्हा
धीरे-धीरे मैं भी तो, जीवन की पैड़ी पर चढ़ता चला गया। समय की उँगली पकड़, आश्रमों की दहलीज़ तक पहुँचता चला गया। धीरे-धीरे मैं भी तो, जीव…
कुछ तो है - कविता - प्रवीन 'पथिक'
कुछ तो है! जो ज़िंदगी के थपेड़ो के बीच, बहाती कई ज़िंदगियाँ। भर देती एक तड़प ,निराशा और अंतर्द्वंद्व का, महासागर। जीवन की गोधूली में, न…
ज़िंदगी जैसे सोई ग़ज़ल हो गई - ग़ज़ल - नागेन्द्र नाथ गुप्ता
अरकान : फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन तक़ती : 212 212 212 ज़िंदगी जैसे सोई ग़ज़ल हो गई, झोपड़ी रात भर में महल हो गई। ख़ूब चर्चा चली, हो गई सब ह…