जीवन का अधूरापन - कविता - राकेश कुशवाहा राही

जीवन का अधूरापन भर न सका,
स्वप्न का टूट जाना मैं सह न सका।
ज़िन्दगानी दरिया के समानांतर है,
इसीलिए जीवन भी रुक न सका।

जग में कुछ सुन्दर फूल खिल गए,
तो कुछ सुमन मुरझाकर मिट गए।
पुष्पों में है ख़ुशी से जीने की कला,
इसीलिए वे जीवन समर जीत गए।

अंधेरे मन को चंद जुगनू चमका गए,
बालमन को भी ज़रा सा बहका गए।
रौशनी के बिना बहुत बेनूर है जीवन,
इसीलिए टूटे मन को वे सहला गए।

राकेश कुशवाहा राही - ग़ाज़ीपुर (उत्तर प्रदेश)

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