ज़िंदगी के रंगमंच पर हर किरदार को निभा जाएँगे,
ये दोस्त देख हम कठपुतली है हर दर्द छिपा जाएँगे।
नचाती हैं दुनिया मुझे अपनी ऊँगलीयों के इशारों से,
देखना तमाशाईयों हम एक दिन सबको रूला जाएँगे।
रख लिया है हम ने अपने सीनें पर ये संग-ए-सब्र,
ये सोचकर कि कभी तो अपनी मेयारी दिखा जाएँगे।
अपनी शादमानी किसको दिखाए कौन अश्क-बार है,
इस चश्मेबद् तहे अपनी नज़रे अदब से झुका जाएँगे।
कोई तदबीर नहीं दिखती इस सूरत-ए-हाल में 'मीर',
बस लोग मेरे जनाज़े पे आ चार अश्क बहा जाएँगे।
दिलीप वर्मा 'मीर' - सिरोही (राजस्थान)