संदेश
बदलता दौर - कविता - बिंदेश कुमार झा
कल जो भगा रहा था मुझे, आज वह मुझे बुला रहा है। कल जिस ने रुलाया था, आज वही हँसा रहा है। यह ज़िंदगी का बदलता दौर है, जहाँ परिवर्तन की शि…
जीवन धारा - कविता - रमाकांत सोनी 'सुदर्शन'
हर्ष उमंग ख़ुशियों की लहरें बहती जीवन धारा, मेहनत लगन हौसला धरकर पाते तभी किनारा। भावों की पावन गंगा है मोती लुटाते प्यार के, पत्थर …
आहिस्ता चल ज़िन्दगी - कविता - स्वाति कुमारी
आहिस्ता चल रहीं ज़िन्दगी, अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाक़ी है, कुछ दर्द मिटाना बाक़ी है, कुछ फ़र्ज़ निभाना बाक़ी है, रफ़्तार में तेरे चलने स…
जीवन के उस पार क्या है? - कविता - मोनिका मानवी
जीवन के उस पार क्या है? अपार शांति या घोर लालसा? पूर्णतः लालसा नहीं, किन्तु शांति भी नहीं। इस पार इच्छाओं का यदि अंत हुआ हो तो उस पा…
जीवनोत्सव - कविता - विनय विश्वा
जीवन का होना उत्सव होना है मतलब नया राग बोना है। बोना है धरती में पीड़ा को जो वीणा की धुन सुनाती इड़ा को खुल जाता ज्ञान की इंद्रियाँ सर…
फ़नकारी है जीवन जीने की - कविता - अनिल कुमार
एक उदासी भरे पल को हँसते हूए चेहरे से कह देना एक कला है जीवन जीने की एक पीड़ा उत्पीड़ित क्षण को मुस्कान के पीछे छिपा लेना एक कौशल है …
जीने की परिभाषा सीखो - गीत - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
यदि परिवार चलाना हो तो, जीने की परिभाषा सीखो। थोड़े दिन का यह जीवन है, आना जाना लगा हुआ है। नश्वरता बैठी अग-जग में, यह क्रम अविरल बना …
दिया रूपी जीवन - कविता - लक्ष्मी दुबे
थरथराता सहमा सा "दिया" रूपी जीवन अब अपने लौ के अंत को देखता है। अँधियारा सा हर ओर व्याप्त है कुछ बुझते हुए चिराग़ों को ये बड़…
सुनो कुछ कहना है - कविता - मेहा अनमोल दुबे
सुनो कुछ कहना है– ज़िंदगी कभी आसान नहीं होती, आसान बनाना पड़ता है, कभी-कभी बेवजह भी गुनगुनाना पड़ता है, ख़्वाहिश ज़रूर पूरी करो पर जीना…
कहाँ है जीवन - कविता - मेहा अनमोल दुबे
क्षण भर जीवन, मनभर जीवन, ना मन जीवन, ना तन जीवन, विचारो में तन्मय, "जीवन" अक्सर मन कि जलन-कूड़न में खोजते जीवन, पर, इसमें…
करो आत्म तन का मंथन - कविता - राघवेंद्र सिंह
जीवन रूपी क्षीर सिन्धु में, करो आत्म तन का मंथन। रत्न चतुर्दश ही निकलेंगे, स्वयं करो इसका ग्रंथन। निज श्रम मंदराचल मथनी हो, वासुकी नाग…
मैंने जीना सीख लिया है - गीत - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
घर में रहा अकेले तो भी, मैंने जीना सीख लिया है। जी घबडा़या गीता पढ़ ली, सीखी मैंने जीवन धारा। फिर चाहा तो गीत बनाया, रहा गुनगुना यही स…
जीवन पथ - कविता - बृज उमराव | जीवन पर प्रेरक कविता
मानव जीवन का सफ़र कठिन, यह राह बहुत पथरीली है। फूलों की यह सेज नहीं, अनजानी और कंटीली है।। कल का है कुछ पता नहीं, कर्म क्षेत्र में बढ़न…
जीवन के कुछ अवशेष - कविता - प्रवीन 'पथिक'
आजकल मन उदास रहता है, तू नहीं होती, एहसास रहता है। मिटा दी मैंने अपनी हर ख़्वाहिश, बस तु ही एक ख़ास रहता है। डर जाता देख दुनिया का मंज़र,…
तू क्या जानती है - कविता - प्रवीन 'पथिक'
तू क्या जानती है, तुझसे डर जाऊँगा मैं! तेरे बिन, हाँ! तेरे बिन न रह पाऊँगा मैं? ऐसा तेरा सोचना व्यर्थ है। ना ही …
मैं जी गया - कविता - विनय विश्वा
आज जीने का आधार मिल गया कल तक भटकता-फिरता था आज जीवन के साथ चलने का ईनाम मिल गया एक नन्हा बीज मिल गया। कितना स्वार्थी था यह पिता अपने …
ऐ व्यस्त ज़िंदगी! - कविता - आर्तिका श्रीवास्तव
ऐ व्यस्त ज़िंदगी! तुझसे दो पल मुझे चुराने है, कुछ प्यारे लम्हें अपनों के संग बिताने हैं। कभी मैं बैठूँ संग सहेली, कभी दोस्तों संग गाऊँ,…
सफ़र - कविता - डॉ॰ सरला सिंह 'स्निग्धा'
बड़ी अजब है रीति यहाँ की सबको बस चलते जाना है। बिना कहे बिन बोले कुछ भी यह सफ़र पूर्ण हो जाना है। साँसों की डोरी का ये बन्धन ये संसार …
जीवन: एक युद्ध - कविता - सिद्धार्थ 'सोहम'
था वो कहने की शबर में हार जाऊँगा मैं एक दिन हार जाऊँगा मैं एक दिन था वो कहने की फ़िक्र में, यूँ दब दबी आवाज़ में स्वर कहीं उदघोष का और…
बीत रहा जीवन - कविता - अमरेश सिंह भदौरिया
अधरों पर मुस्कान है और आँखों में उलझन, संकल्पों और विकल्पों में बीत रहा जीवन। समझौते में हरदम रहती जीने की मजबूरी, कभी-कभी सपनो में कु…