संदेश
हिंदी हिंद देश की शान - मुक्तक - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'
1 हिंदी हिंद देश की शान। हिंदी हम सबका सम्मान॥ नेह-प्रेम बरसता घर-घर, हिंदी हिंदू मेरी जान॥ 2 रोली सुनिएँ आए निंदी। हिंदी माथे की…
हिन्दी बोल इंडिया - कविता - गणपत लाल उदय
हिन्दी बोल इंडिया कहकर क़लम आज चलानी है, सरल शब्दों में कहा जाएँ तो यह बहुत वंदनीय है। वैश्विक स्तर पे जानते है अब राष्ट्रभाषा बनवानी …
हिन्द की पहचान हिन्दी - कविता - राघवेंद्र सिंह
मेरे हिन्द के धरा की, पहचान है ये हिन्दी। वागेश्वरी की वीणा, और तान है ये हिन्दी। हिन्दी ही स्वर है व्यंजन, हिन्दी ही व्याकरण है।…
हिंदी पहचान हमारी है - कविता - ईशांत त्रिपाठी
देखो माँ सोचो तो... कल दावत का आयोजन है, फिर मित्रों का ही निर्देशन है। कुछ सुन्दर सा, कुछ प्यारा सा, पर अनोखा बनकर आना है। सजीव हो या…
हिंदी भाषा - कविता - अर्चना मिश्रा
हिंद देश के वासी हम चलो इसका मान बढ़ाएँ, हिंदी को सब लोग मिलकर क्यों ना जन-जन तक पहुँचाएँ। हो सर्व सुलभ हिंदी ऐसी साहित्य का ज्ञान बढ…
हिन्दी दिवस - कविता - डॉ॰ रेखा मंडलोई 'गंगा'
हिन्दी बन जन मानस की अति प्रिय भाषा। तार दिलों के जोड़ने की जगाती है सबमें आशा। सभ्यता-संस्कृति की जो बताती है सबको परिभाषा। निराली लि…
प्यारी भाषा हिन्दी है - कविता - आर॰ सी॰ यादव
मातृभाषा अपनी हिंदी वेद अवतरित वाणी है। उन्नति का आधार यही है, जिससे जुड़ा हर प्राणी है॥ रंग-रूप वेषभूषा से हटकर, यह संविधान की ब…
हिन्दी दिवस - कविता - कुमुद शर्मा 'काशवी'
हिन्दी मुझे माँ सी लगती है, सीधी, सरल, सौम्य, प्यारी, माना हर भाषा का ज्ञान है ज़रूरी, जैसे हर रिश्ते की मिठास है ज़रूरी, माँ सी प्यारी …
हिंदी भाषा - घनाक्षरी छंद - रविंद्र दुबे 'बाबु'
हिन्दी भाषा जानो! हिन्द जो है मेरा अभिमान, मातृभू की वंदनीय, भाषा सुखदायी है। सरल सहज तान, स्वर लय माला गीत, पहचान हमारी जो, हिन्दी…
यह हिन्दी हिन्दुस्तानी है - कविता - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'
मिसरी सी मीठी कूक लिए झरनों सी लिए रवानी है। है सुगम बोधिनी भावों की यह हिन्दी हिन्दुस्तानी है॥ वेदों की वाणी की दुहिता यह ज्ञान सुधा …
हिंद के माथे पर हिंदी - कविता - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
हिंद के माथे पर हिंदी बिंदी सा चमके है, आज विश्व के हर कोने में तू मोतियों सा दमके है। बग़ैर तेरे क्या करूँ कल्पना, होती न तू तो क…
हिंदी का मान - कविता - प्रवल राणा 'प्रवल'
मातृ भाषा हो प्रतिष्ठित, अभिव्यक्ति का माध्यम बने। राजभाषा बन गई, जन-जन की भाषा अब बने॥ मूल भाषा संस्कृत, ब्रज, अवधी में बढ़ी। भोजपुरी …
मातृभूमि और मातृभाषा - कविता - गोकुल कोठारी
सुदूर कहीं किसी देश में, जब कोई मिलता, निज भाषा, निज वेश में, मन में वात्सल्य भाव से, उदगम एक सोता होगा, आँखें भर आएँगी, क्यों मनुज मा…
हिन्दी है अभिमान हमारा - गीत - सिम्पी पटेल
हिन्दी जननी, हिन्दी गौरव, हिन्दी है अभिमान हमारा, हिन्दी हेतु समर्पित है धन वैभव प्राण हमारा। कितनी मधुर सुरीली भाषा संस्कार इसकी परिभ…
आम आदमी की व्यथा - कविता - अनिल भूषण मिश्र
ये कविता नहीं सच्ची कथा है, आम आदमी की व्यथा है। आमदनी जब आवश्यकता से कम होती है, मन में चिन्ता बेचैनी स्वाभाविक होती है। रुकने लगते …
मिट्टी की ख़ुश्बू - कविता - मेघना वीरवाल
महका देती है साँसों से गुज़र मिट्टी की ख़ुश्बू रोम-रोम को मेरे भाव विभूर कर देती जब बरखा की एक बूँद का स्पर्श अंदर तक समा लेती है। …
प्रेम में आस - कविता - विनय विश्वा
यादों की कसक लिए खोजती है ये निगाहें प्रेम में ये खोज यूँ ही जारी रहे 'तबस्सुम' खिलता रहे नजारत बढ़ती रहें, क्योंकि प्रेम में ब…
हरसिंगार - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
सायंकाल जब मैं पहुँचा फूलते हरसिंगार के पास वह रोनें लगा, तुम्हारे न रहने के बाद कौन बुझाएगा मेरी प्यास? तुम्हारे अन्तिम प्रयाण पर तुम…
एक घनी विकसित सभ्यता - कविता - इमरान खान
एक घनी विकसित सभ्यता थी। जिसका अंत हो गया दुनिया के नक़्शे से। जिसके जीवाश्म अभी भी उपलब्ध है इतिहास की पुस्तकों में। मैं उसी सभ्यता …
अपने-आप बनती है कविता - कविता - सुनील शर्मा 'सारथी'
दिल की गहराईयों से निकली भावनाओं की अभिव्यक्ति है कविता, अमीर की अमीरी और ग़रीब की भूख से बनती है कविता। कहीं प्रेम का तुफ़ान तो कहीं …
आज ख़ुशियों का मिरा मंज़र कहाँ है - ग़ज़ल - आयुष सोनी
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन तक़ती : 2122 2122 2122 आज ख़ुशियों का मिरा मंज़र कहाँ है, घर में बैठा ढूँढ़ता हूँ घर कहाँ है। म…
बदलता दौर - कविता - बिंदेश कुमार झा
कल जो भगा रहा था मुझे, आज वह मुझे बुला रहा है। कल जिस ने रुलाया था, आज वही हँसा रहा है। यह ज़िंदगी का बदलता दौर है, जहाँ परिवर्तन की शि…
युद्ध और सफ़ेद फूल - कविता - मयंक मिश्र
सफ़ेद फूल! वही सफ़ेद फूल, जो शांति का प्रतीक है; सफ़ेद फूल तो आ गए! लेकिन, उससे पहले; दुनिया में होनी थी शांति! हुआ क्या? युद्ध! बुद्ध …
सोच का अस्तित्व - कविता - सुनीता भट्ट पैन्यूली
सोच का कोई तो अस्तित्व होगा न? डूबते सूरज की वृहद लालिमा में कुछ रेखाएँ खींची ज्यामितीय कुछ ख़ास समझ नहीं आया सोच का ताना-बाना ईश्वर से…
सोचता हूँ - कविता - प्रवीन 'पथिक'
सोचता हूँ, कुछ लिख लूँ। लिखना, दर्द को कुरेदता है; या हृदय को झकझोरता है। दोनो स्तिथियों में, आहत होता हृदय ही। जिसने प्रश्रय दिया था …