मातृभाषा अपनी हिंदी
वेद अवतरित वाणी है।
उन्नति का आधार यही है,
जिससे जुड़ा हर प्राणी है॥
रंग-रूप वेषभूषा से हटकर,
यह संविधान की बिंदी है।
एक सूत्र में सभी पिरोए,
प्यारी भाषा हिन्दी है॥
जाति-धर्म, संप्रदाय का बंधन,
सदा तोड़ती हिंदी है।
जन-जन की मीठी बोली है,
भाषाओं की जननी है॥
भाषाओं का मूल है हिन्दी,
देवों की भी बोली भाषा है।
सदा प्रेम-रस घोल रही है,
सदियों से गूँजित गाथा है॥
पूरब से पश्चिम तक फैली,
जनमानस की मूल है हिन्दी।
संस्कार, संस्कृति, सृजन से,
शृंगार रसों का फूल है हिन्दी॥
आओ मिलकर इसे सँवारें,
हिंदी का उत्थान करें।
अपनी बोली, अपनी भाषा पर,
आंनन्दित हों, अभिमान करें॥
आर॰ सी॰ यादव - जौनपुर (उत्तर प्रदेश)